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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बिना कैसे दे सकता था ? फिर विवरणको पढ़ने के बाद उन्हें कुछ प्रश्न भी सूझते ही। किन्तु उनकी स्मृति जितनी तीव्र थी उनकी श्रम करनेकी शक्ति भी उतनी ही प्रबल थी। उन्होंने रात-भर जागरण किया तथा पोलक और मुझसे' भी कराया । उन्होंने एक-एक बातकी पूरी जानकारी प्राप्त की और स्वयं सब बातें भलीभाँति समझी हैं या नहीं इसकी जाँच भी करा ली। वे अपने विचार मुझे बताते जाते थे। अन्तमें उन्हें सन्तोष हो गया। मैं तो निश्चिन्त था ही।

उन्होंने लगभग दो घंटे या उससे कुछ ज्यादा मन्त्रियोंसे बात की और वहाँसे आकर मुझसे कहा : 'आपको एक वर्षके भीतर हिन्दुस्तान लौटना है। सब बातोंका फैसला हो गया है। काला कानून रद कर दिया जायेगा। प्रवासी कानूनमें से रंगभेद निकाल दिया जायेगा। तीन पौंडका व्यक्ति कर भी रद कर दिया जायेगा ।” मैंने कहा: “मुझे इसमें बड़ा सन्देह है। इन मन्त्रियोंको जितना मैं समझता हूँ उतना आप नहीं समझते। आपकी आशावादिता मुझे प्रिय है, क्योंकि मैं स्वयं आशावादी हूँ, किन्तु मैं अनेक बार धोखा खा चुका हूँ, इस कारण इस सम्बन्धमें ऐसी आशा नहीं रख सकता । फिर भी भयकी कोई बात नहीं है। आप उनसे वचन ले आये, मेरे लिए इतना पर्याप्त है। मेरा धर्म केवल इतना ही है कि आवश्यकता हो, तब लड़ लूं और यह लड़ाई न्यायकी है यह सिद्ध कर दूं। यह सिद्ध करनेमें आपको मिला हुआ वचन मेरे लिए बहुत लाभदायक होगा और लड़ना आवश्यक हो जानेपर उसके कारण लड़नेमें हमारी शक्ति दुगुनी हो जायेगी। किन्तु बहुत-से हिन्दुस्तानियोंको जेल जाना पड़ेगा और ऐसा नहीं लगता कि एक वर्षके भीतर में हिन्दुस्तान लौट सकूँगा।"

इसपर गोखलेने कहा: “मैं जो कुछ कह रहा हूँ, इसमें अन्तर नहीं पड़ेगा। मुझे जनरल बोथाने वचन दिया है कि काला कानून रद कर दिया जायेगा और तीन पौंडी कर भी उठा दिया जायेगा । आपको बारह महीने में हिन्दुस्तान आना ही पड़ेगा। मैं आपका एक भी बहाना सुननेवाला नहीं हूँ।"

उन्होंने जोहानिसबर्ग में जो भाषण दिया वह प्रिटोरियाका दौरा करनेके बाद दिया था।

गोखले फिर डर्बन, पीटरमैरित्सबर्ग और अन्य स्थानोंमें गये। वे इन जगहोंमें भी बहुत से गोरोंके सम्पर्कमे आये। उन्होंने किम्बलेकी हीरेकी खाने देखी। स्वागत समितिने किम्बलें और डर्बनमें भी जोहानिसबर्ग-जैसे भोज दिये थे और उनमें बहुतसे अंग्रेजोंने भाग लिया था। इस प्रकार गोखले हिन्दुस्तानियों और गोरों-- दोनोंका मन जीतकर १७ नवम्बर, १९१२ को दक्षिण आफ्रिकाके तटसे रवाना हुए। मैं और कैलनबैक उनको इच्छासे उन्हें जंजीबारतक पहुँचाने गये थे। हमने उनके लिए जहाजमें अनुकूल भोजनकी व्यवस्था की थी। मार्गमें डेलागोआबे, इनहामवेन और जंजीबार आदि बन्दरगाहोंमें उनका बहुत सम्मान किया गया था ।

जहाजमें हमारी बातें केवल हिन्दुस्तानके सम्बन्धमें अथवा उसके प्रति हमारे कर्तव्य के सम्बन्ध हुईं। उनकी सभी बातोंमें उनकी कोमल भावना, सत्यपरायणता

१. अंग्रेजी में यहां है: “ दूसरोंको भी...।”