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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

और देशभक्तिकी झलक मिलती थी। मैंने देखा कि वे जहाजमें जो खेल खेलते थे उनमें भी उनकी भावना देश-सेवाकी अधिक रहती थी और उनमें पूर्णता तो होती ही थी ।

हमें जहाजमें निश्चिन्ततासे बात करनेकी फुर्सत मिलती थी। इसमें उन्होंने मुझे हिन्दुस्तान आने के लिए तैयार कर लिया था। उन्होंने हिन्दुस्तानके सभी नेताओंके चरित्रका विश्लेषण किया था। उनका यह वर्णन इतना यथार्थ था कि जब मुझे उन नेताओंके सम्बन्ध में निजी अनुभव हुआ तब मुझे उसमें और उनके इस विश्लेषण में शायद ही कहीं अन्तरकी कोई बात मिली।

गोखलेके दक्षिण आफ्रिकाके प्रवासमें उनके साथ मेरे सहवासके ऐसे बहुतसे पवित्र संस्मरण हैं जिन्हें मैं यहाँ दे सकता हूँ; किन्तु सत्याग्रहके इतिहाससे उनका सम्बन्ध न होनेके कारण मुझे अपनी कलम अनिच्छापूर्वक रोकनी पड़ती है। जंजीबारमें उनसे अलग होना हम दोनोंके लिए बहुत दुःखजनक था; किन्तु देहधारियोंका निकटसे-निकट सहवास भी अन्ततोगत्वा टूटता ही है, यह समझकर कैलनबैकने और मैंने सन्तोष किया और यह आशा की कि 'गोखलेकी भविष्यवाणी फलेगी और हम दोनों एक वर्षमे हिन्दुस्तान जा सकेंगे। किन्तु यह असम्भव हो गया।

ऐसा होनेपर भी गोखलेकी दक्षिण आफ्रिकाकी यात्रासे हम अधिक दृढ़ हुए और जब लड़ाई फिर तीव्र रूपमें आरम्भ हुई तब हम उसका मर्म और उसकी आवश्यकता अधिक समझे। यदि गोखलेने दक्षिण आफ्रिकाकी यात्रा न की होती और वहाँके मन्त्रियोंसे उनकी भेंट न हुई होती तो हम तीन पौंडके व्यक्ति करको लड़ाईका विषय नहीं बना सकते थे। यदि काला कानून रद होनेके बाद सत्याग्रह- की लड़ाई बन्द हो जाती तो हमें तीन पौंडके करके सम्बन्ध में नया सत्याग्रह करना पड़ता और उसमें असीम कष्ट सहना पड़ता। इतना ही नहीं, बल्कि उसके लिए लोग तुरन्त तैयार है भी या नहीं इस सम्बन्धमें भी शंका तो थी ही । इस करको रद कराना स्वतन्त्र हिन्दुस्तानियोंका कर्तव्य था । हम इसे रद करवानेके लिए आवेदन- निवेदनके सब उपाय काममें ला चुके थे। हमपर यह कर सन् १८९५ से लागू था, किन्तु घोरसे-घोर कष्ट भी लम्बे अर्सेतक कायम रहें तो लोग उसके अभ्यस्त हो जाते हैं और उसका विरोध करना धर्म है, उन्हें यह समझाना मुश्किल हो जाता है। और जगतको भी उसकी जघन्यता समझाना उतना ही मुश्किल होता है। गोखलेके प्राप्त किये हुए वचनसे सत्याग्रहियोंका मार्ग सरल हो गया । सरकारका अपने वचनके अनुसार इस करको रद न करना वचन-भंग था और उससे लड़ाईका प्रबल कारण मिलता था। यही हुआ भी। सरकारने एक सालके भीतर इस करको रद नहीं किया। इतना ही नहीं, बल्कि यह स्पष्ट घोषणा की कि यह कर रद किया ही नहीं जा सकता।

इसलिए गोखलेकी यात्रासे तीन पौंडी करको सत्याग्रहियोंके द्वारा रद करानेमें सहायता मिली, इतना ही नहीं, बल्कि इस यात्रासे गोखले दक्षिण आफ्रिकाके प्रश्नके विशेषज्ञ माने गये। दक्षिण आफ्रिकाके सम्बन्धमें उनकी रायका महत्त्व बढ़ा और दक्षिण