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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आफ्रिकाके हिन्दुस्तानियोंके सम्बन्ध में अपने निजी ज्ञानके कारण वे इस सम्बन्धमें हिन्दुस्तानका कर्त्तव्य भी अधिक समझ सके और हिन्दुस्तानको समझानेमें भी समर्थ हुए। जब यह लड़ाई फिर आरम्भ हुई तब हिन्दुस्तानसे घनकी वर्षा हुई। लॉर्ड हार्डिगने भी सत्याग्रहियोंके प्रति सहानुभूति बताई और उन्हें प्रेरणा दी। श्री एन्ड्रयूज और श्री पियर्सन हिन्दुस्तानसे दक्षिण आफ्रिका आये। गोखलेकी यात्रा न होती तो यह सब होना सम्भव नहीं था। वचनभंग किस तरह किया गया और उसके बाद क्या हुआ, यह सब नये प्रकरणका विषय है।

अध्याय ३८

वचन-भंग

दक्षिण आफ्रिकाकी लड़ाई में, सत्याग्रहमें सिद्धान्तोंका बहुत ही विचार रखा गया था और उसमें सरकारकी प्रचलित नीतिके विरुद्ध कुछ भी नहीं था। इतना ही नहीं, बल्कि इस बात का भी ध्यान रखा गया था कि सरकारको अनुचित रूपसे कष्ट न दिया जाये। उदाहरण के लिए, चूँकि काला कानून केवल ट्रान्सवालके हिन्दुस्तानियोंपर ही लागू था, इसलिए सत्याग्रहको यह नीति थी कि उसमें केवल ट्रान्सवालके हिन्दुस्तानी ही भाग लें। नेटाल, केप कालोनी आदि उपनिवेशोंसे सत्या- ग्रही भरती करनेका कोई भी प्रयत्न नहीं किया गया; वहाँसे लोगोंने इस बारेमें प्रस्ताव भेजे, तब भी उन्हें स्वीकार नहीं किया गया। लड़ाई भी इस कानूनको रद करानेतक ही मर्यादित रखी गई। इस बातको न तो गोरे समझ सकते थे और न हिन्दुस्तानी । आरम्भमें हिन्दुस्तानियोंकी ओरसे यह मांग भी की जाती थी कि यदि लड़ाई शुरू करने के बाद काले कानूनके अतिरिक्त अन्य कष्ट भी लड़ाईके उद्देश्यों में सम्मिलित किये जा सकें तो क्यों न किये जायें ? मैंने इन लोगोंको धीरजसे समझाया कि इससे सत्यका भंग होता है और जहाँ सत्यका ही आग्रह हो वहाँ सत्यके भंगकी बात भी कैसे सोची जा सकती है ? शुद्ध लड़ाईमें लड़ाईके दरम्यान सैनिकोंका बल बढ़ता दिखाई दे तो भी आरम्भमें रखे हुए उद्देश्यसे आगे नहीं बढ़ा जा सकता। इसके विपरीत जिस उद्देश्यको लेकर लड़ाई लड़ी गई हो वह उद्देश्य समय बीतने के साथ-साथ सैनिकोंका बल क्षीण होनेपर भी त्यागा नहीं जा सकता । दक्षिण आफ्रिकाकी लड़ाईमें इन दोनों सिद्धान्तोंपर पूरा आचरण किया गया था । लड़ाईके आरम्भमें जिस बलको ध्यान में रखकर उद्देश्य स्थिर किया गया था वह बल पीछे झूठा निकला, यह हम देख चुके हैं; और यह भी देख चुके हैं कि शेष बचे हुए मुट्ठीभर सत्याग्रहियोंने फिर भी लड़ाई कायम रखी। इस प्रकार जूझना अपेक्षाकृत आसान होता है। किन्तु बलमें वृद्धि होनेपर भी उद्देश्यमें वृद्धि न करना

१. २४ नवम्बर १९१३ को वाइसराय लॉर्ड हाडिंगने मद्रासमें दिये गये अपने भाषण में दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहियोंके प्रति गहरी सहानुभूति व्यक्त की थी। देखिए खण्ड १२, परिशिष्ट १६ ।