पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/२३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२११
दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

अथवा जेलके कष्टोंसे त्रस्त हो जाओ तो मैं इसमें तुम्हें तो दोषी नहीं मानूंगा; किन्तु मेरा क्या हाल होगा ? तब मैं तुमको किस तरह अपना सकूँगा और संसारके सामने किस तरह खड़ा रह सकूँगा ? मैंने तुम्हें इस भयसे ही जेल जानेके लिए नहीं कहा है।" इसका उत्तर मुझे यह मिला: "मैं हिम्मत हारकर जेलसे छूटूं तो आप मुझे न अपनायें। मेरे बेटे यह कष्ट सहन कर सकते हैं, आप सब सहन कर सकते हैं, अकेली में ही इसे सहन न कर सकूँगी, आप यह बात कैसे सोच सकें ? मुझे तो इस लड़ाई में अवश्य जाना है।" मैंने उत्तर दिया : तब मैं भी तुमको इसमें अवश्य ही सम्मिलित करूँगा। तुम मेरी शर्तें तो जानती ही हो। तुम्हें मेरा स्वभाव भी मालूम है । तुम्हें अब भी विचार करना हो तो फिर विचार कर लो और पूरा विचार करनेपर इसमें सम्मिलित न होना चाहो तो तुम उसके लिए स्वतन्त्र हो । यह भी समझ लो कि निश्चय बदलने में कोई लज्जाकी बात नहीं है।" मुझे इसका उत्तर मिला, "विचार तो कुछ करना है ही नहीं; यह मेरा निश्चय ही है।"

फोनिक्समें जो दूसरे लोग रहते थे मैंने उनसे भी कह दिया कि वे भी स्वतन्त्र निश्चय करें। लड़ाई थोड़े दिन चले, चाहे बहुत दिन, फीनिक्स रहे या बरबाद हो, जेल जानेवाले तन्दुरुस्त रहें अथवा बीमार पड़ें; किन्तु कोई भी फिर कदम वापस नहीं ले सकेगा। मैंने यह शर्त बार-बार और बहुत तरहसे सबको समझा दी। सब तैयार हो गये। फीनिक्ससे बाहरके केवल एक रुस्तमजी जीवनजी घोरखोदू थे (वे काकाजी कहे जाते थे ) । मैं उनसे इस बातचीतको छुपाकर नहीं रख सकता था। काकाजी पीछे रहते, यह कैसे हो सकता था। वे जेलमें हो आये थे; किन्तु उनका आग्रह फिर जेल जानेका था। इस टुकड़ीके लोगोंके नाम ये थे :

१. सौ० कस्तूरबाई मोहनदास गांधी, २. सौ० जयकुँवर मणिलाल डाक्टर, ३. सौ० काशी छगनलाल गांधी, ४. सौ० सन्तोक मगनलाल गांधी, ५. श्री पारसी रुस्त- मजी जीवनजी घोरखोद्ग, ६. श्री छगनलाल खुशालचन्द गांधी, ७. श्री रावजीभाई मणिभाई पटेल, ८. श्री मगनभाई हरिभाई पटेल, ९. श्री सॉलोमन रायप्पन, १०. भाई राजू गोविन्द, ११. भाई रामदास मोहनदास गांधी, १२. भाई शिवपूजन बद्री, १३. भाई गोविन्द राजुलू, १४. श्री कुप्पुस्वामी मूनलाइट मुदलियार, १५. भाई गोकुल- दास हंसराज और १६. रेवाशंकर रतनसी सोढा इसके बाद क्या हुआ यह अगले प्रकरणमें देखें ।

अध्याय ४०

स्त्रियाँ कैदमें

यह टुकड़ी सीमा लाँघकर बिना परवाने ट्रान्सवालमें प्रवेश करके जेलमें जाने- वाली थी । पाठक नामोंसे देखेंगे कि इनमें से कुछ ऐसे हैं कि यदि वे प्रकट हो जाते तो पुलिस कदाचित् उन लोगोंको गिरफ्तार न करती। मेरे सम्बन्धमें ऐसा ही हुआ था। मुझे दो एक बार गिरफ्तार करनेके बाद सीमा पार करनेपर पुलिसने गिरफ्तार