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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करना बन्द कर दिया था। इस टुकड़ीके कूचकी खबर किसीको भी नहीं दी गई थी । अखबारोंमें तो वह दी ही कैसे जा सकती थी ? इसके अतिरिक्त उसमें शामिल लोगों- को यह बात समझा दी गई थी कि उन्हें अपना नाम और पता पुलिसको भी नहीं बताना है और यह कह देना है कि वे अपने नाम अदालतमें बतायेंगे ।

पुलिसके सम्मुख ऐसे मामले बहुत बार आते रहते थे। हिन्दुस्तानी, गिरफ्तार होनेकी आदत पड़ जानेके बाद, बहुत बार केवल पुलिससे मीठी छेड़छाड़ करनेके लिए अपने नाम नहीं बताते थे। इसलिए पुलिसको इस बार भी इसमें कोई विचित्रता नहीं जान पड़ी। पुलिसने इस टुकड़ीको गिरफ्तार कर लिया। उसके सदस्योंपर मुकदमे चलाये गये और उन सबको (२३ सितम्बर, १९१३ को) तीन-तीन महीनेकी कड़ी कैदकी सजा दी गई ।

जो बहनें ट्रान्सवालमें गिरफ्तार होनेका प्रयत्न करती हुई निराश हो गई थीं, वे नेटालमें प्रविष्ट हुईं। उन्हें पुलिसने बिना परवाने प्रविष्ट होनेपर गिरफ्तार नहीं किया। अतः यह तय हुआ था कि यदि वे गिरफ्तार न की जायें तो वे न्यूकैसिलको केन्द्र बनायें और वहाँकी कोयलेकी खानोंके हिन्दुस्तानी मजदूरोंसे हड़ताल करने का अनुरोध करें। न्यूकैंसिल नेटालमें कोयलेकी खानोंका केन्द्र है। इन खानोंमें मुख्यतः हिन्दुस्तानी मजदूर थे । अतः इन बहनोंने उनमें अपना काम शुरू किया। उसका असर बिजलीकी तरह तेजीसे हुआ। मजदूरोंपर तीन पौंडी करकी बातने गहरा असर डाला और उन्होंने अपना काम छोड़ दिया। यह खबर मुझे तारसे मिली। मैं इससे प्रसन्न हुआ; किन्तु उतना ही घबराया भी। मैं सोचने लगा, अब मुझे क्या करना चाहिए ? में इस अद्भुत जागरणके लिए तैयार न था। मेरे पास पैसा नहीं था, न इतने आदमी ही थे जो हड़तालके कामको सँभाल सकें। मैं अपना कर्त्तव्य समझ रहा था। मुझे न्यूकैंसिल जाना था और जो-कुछ हो सके वह करना था। मैं रवाना हो गया।

अब सरकार इन बहनोंको कैसे छोड़ती? वे गिरफ्तार कर ली गईं। उनको भी (२१ अक्तूबर, १९१३ को) गिरफ्तार की गई फीनिक्सकी बहनोंके बराबर तीन- तीन महीनेकी कैदकी सजाएँ दी गईं और वे रखी भी गईं उसी जेलमें।

इससे दक्षिण आफ्रिकाके हिन्दुस्तानी जाग गये। उनकी नींद टूट गई। उनमें नई चेतना आई जान पड़ी। किन्तु स्त्रियोंके बलिदानने हिन्दुस्तानको भी जगा दिया। सर फीरोजशाह मेहता अबतक उदासीन थे । सन् १९०१ में उन्होंने मुझे कड़ी चेतावनी देते हुए दक्षिण आफ्रिका न जानेकी सलाह दी थी। उनका मत था कि जबतक हिन्दुस्तान स्वतन्त्र नहीं होता तबतक वह प्रवासियोंके लिए कुछ नहीं कर सकता। उनपर सत्याग्रहकी लड़ाईका असर भी कम ही हुआ था। किन्तु स्त्रियोंके जेल जानेका उनपर जादूका-सा असर हुआ। उन्होंने स्वयं ही टाउन हॉलमें भाषण देते हुए कहा था, "स्त्रियोंके जेल जानेसे मेरी शान्ति भी भंग हो गई है। अब हिन्दुस्तान चुप बैठा नहीं रह सकता।

१. गांधीजी १७ अक्तूबरको न्यूकैसिल गये थे ।

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