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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

मैंने उत्तर दिया : “भाई, तुमने बहुत ही अच्छा काम किया; इसीको मैं सच्ची बहादुरी कहता हूँ। तुम्हारे-जैसे लोगोंसे ही हम जीतेंगे। "

मैंने उसे इस तरह बधाई तो दी, किन्तु अपने मनमें सोचा कि यदि ऐसा व्यवहार बहुतोंके साथ किया जाये तो हड़ताल नहीं चलेगी। यदि लोग मारपीटकी शिकायत भी न करें तो मालिकोंके खिलाफ और क्या शिकायत हो सकती है? वे हड़तालियोंकी रोशनी, पानी आदिकी सुविधाएँ बन्द कर दें तो इसमें शिकायतकी ज्यादा गुंजाइश नहीं; पर गुंजाइश हो या न हो, किन्तु लोग ऐसी स्थितिमें टिक कैसे सकते हैं ? मुझे इसका कोई उपाय तो सोच ही लेना चाहिए, अन्यथा लोग बिलकुल हारकर कामपर वापिस जायें, इससे तो यही अच्छा है कि वे अपनी हार स्वीकार कर लें और कामपर लौट जायें। किन्तु ऐसी सलाह लोग मेरे मुँहसे सुन ही नहीं सकते थे। रास्ता एक ही था कि ये लोग मालिकोंकी कोठरियोंको छोड़ दें यानी हिजरत करें।

ये मजदूर दस-बीस तो थे नहीं, सैकड़ों थे। उनको हजारों होनेमें भी देर न लगती । प्रश्न था, मैं उनके लिए मकान कहाँसे लाऊँ ? खानेके लिए कहाँसे लाऊँ ? मुझे हिन्दुस्तानसे तो पैसा मँगाना नहीं था। वहाँसे बादमें धनकी जो वर्षा हुई वह अभी आरम्भ नहीं हुई थी। हिन्दुस्तानी व्यापारी इतने डर गये थे कि वे मुझे खुल्लम- खुल्ला कोई मदद देनेके लिए तैयार नहीं थे। उनका व्यापार खान-मालिकों और दूसरे गोरोंके साथ था; इसलिए वे खुल्लम-खुल्ला मेरा साथ कैसे देते ? मैं जब-जब न्यूकैसिल जाता तब उन्हींके यहाँ ठहरता। मैंने इस बार स्वयं ही उनका रास्ता आसान कर दिया और दूसरी जगह ठहरनेका निश्चय किया ।

मैं बता चुका हूँ कि जो बहन ट्रान्सवालसे आई थीं, वे द्रविड़ प्रान्तकी थीं। वे एक द्रविड़ परिवारमें, जो ईसाई था, ठहरी थीं। उस परिवारकी स्थिति सामान्य थी। उसके पास जमीनका एक टुकड़ा और दो या तीन कमरेका घर था । घरके मालिकका नाम लाजरस था। मैंने उन्हींके घर ठहरनेका निश्चय किया। और उन्होंने मेरा सहर्ष स्वागत किया। गरीबोंको किसका डर हो सकता है ? मूलतः गिरमिटिया कुटुम्बके होनेसे उन्हें अथवा उनके सगे-सम्बन्धियोंको तीन पौंडी कर देना होता था; अतः वे स्वभावतः गिरमिटियोंके कष्टोंको भली-भाँति जानते थे और उनके प्रति पूरी सहानुभूति रखते थे। मेरा स्वागत करना मेरे मित्रोंके लिए कभी आसान तो रहा नहीं; किन्तु इस समय मेरा स्वागत करनेका अर्थ था आर्थिक विनाश और शायद जेलका भी स्वागत करना । ऐसी स्थितिमें पड़नेके लिए कम ही धनी व्यापारी तैयार हो सकते थे; अतः मैंने सोचा कि मुझे अपनी और उनकी मर्यादा समझकर उन्हें इस विषम स्थितिमें न डालना चाहिए। बेचारे लाजरस मजूरी जानेसे थोड़ा नुकसान उठाना पड़ता तो उठा लेते। गिरफ्तारी होती तो जेल भी वह चला जाता, किन्तु अपनेसे भी गरीब गिरमिटियोंका कष्ट बिना बेचैनी अनुभव किये वह कैसे सह सकता था ? लाजरसने इन गिरमिटियोंकी मददके लिए आई हुई अपने यहाँ ठहरनेवाली बहनोंको अपनी आँखोंसे जेल जाते देखा था। उस भाईने सोचा कि गिरमिटियोंके