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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास


नहीं करेगी और हममें से कोई छुपे तौरपर ट्रान्सवालमें प्रवेश करेगा तो उसके लिए हम जिम्मेदार न होंगे। हमारी लड़ाईमें कोई छुपी बात नहीं है। किसीको भी अपना व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं साधना है। किसीका छुपे तौरपर प्रवेश करना हमें पसन्द नहीं । किन्तु जहाँ हजारों भोले-भाले लोगोंसे काम लेना हो और प्रेमके अतिरिक्त कोई दूसरा बन्धन न हो, वहाँ हम किसीके कार्यके सम्बन्ध में उत्तरदायी नहीं हो सकते। फिर सरकार यह भी जान ले कि यदि वह तीन पौंडी करको रद कर दे तो गिरमिटिय अपने कामपर वापिस पहुँच जायेंगे और हड़ताल समाप्त हो जायेगी । हम उन्हें सत्याग्रहमें अपनी दूसरी शिकायतें दूर करवाने के लिए सम्मिलित न करेंगे।

इसलिए ऐसी अनिश्चित स्थिति थी कि सरकार कब गिरफ्तार करेगी यह नहीं कहा जा सकता था। किन्तु ऐसी स्थिति में सरकारके उत्तरकी प्रतीक्षा बहुत दिनों तो नहीं की जा सकती थी । एक-दो डाकें आनेतक ही राह देखी जा सकती थी । इसलिए हमने यह निश्चय किया कि यदि सरकार हमें गिरफ्तार न करे तो हम तुरन्त चार्ल्सटाउनसे चलकर ट्रान्सवालमें प्रविष्ट हो जायें। यदि वह हमें मार्गमें न पकड़े तो हमारा काफिला बीस या चौबीस मीलकी रफ्तारसे आठ दिनतक कूच जारी रखे। हमारा विचार यह था कि हम आठ दिनमें टॉल्स्टॉय फार्म पहुँच जायें। हमने लड़ाई समाप्त होने तक फार्ममें ही रहने और काम करके अपना गुजारा करनेकी बात सोची थी । श्री कैलेनबैकन तमाम इन्तजाम कर रखा था। हमें वहाँ मिट्टीके मकान बनाने थे और उनको बनानेका काम इस काफिलेसे लेना था ।

हमारा विचार था कि तबतक हम छोलदौरियाँ लगाकर बूढ़े और कमजोर लोगोंको उनमें रखेंगे और मजबूत लोगोंको बाहर पड़ा रहने देंगे। इसमें दिक्कत एक ही आती थी कि अब वर्षा ऋतु आरम्भ होनेवाली थी। इसलिए वर्षाकालमें सबको आश्रयकी आवश्यकता थी। किन्तु उसकी व्यवस्था करने का साहस श्री कैलनबैकमें था। हमने इस काफिलेके कूचकी दूसरी तैयारियाँ भी कर ली थीं। चार्ल्सटाउनके सज्जन अंग्रेज डाक्टर ब्रिस्कोने हमारे लिए दवाओंकी पेटी तैयार कर दी थी और उसमें कुछ ऐसे औजार रख दिये थे जिन्हें मेरा-जैसा नौसिखिया भी काममें ले सकता था। यह पेटी हमें खुद उठाकर ले जानी थी क्योंकि हमें काफिलेके साथ कोई सवारी नहीं रखनी थी। पाठक इससे समझ सकेंगे कि उसमें दवाएँ कमसे-कम थीं और इतनी भी नहीं थीं कि एक बारमें सौ आदमियोंको भी दी जा सकें। इसका कारण यह था कि हमें रोज ही किसी न किसी कस्बेके पास ही पड़ाव डालना था, खतम होने- वाली दवाएँ वहाँ मिल जा सकती थीं। फिर हमें अपने साथ कोई रोगी या अपंग तो रखना नहीं था। हमने ऐसे लोगों को रास्ते में ही छोड़ देनेका निश्चय किया था ।

खानेके लिए तो रोटी और चीनीके सिवाय कुछ था ही नहीं, किन्तु यह रोटी आठ दिनतक किस तरह जुटाई जाये, यह प्रश्न था । वह रोज लोगोंमें बांटनी थी । इसका उपाय एक ही था कि हमें हर पड़ावपर कोई रोटी पहुँचाता। इस कामको कौन करता ? वहाँ रोटी बनानेवाले हिन्दुस्तानी तो होते नहीं थे। फिर हर कस्बे या

१. देखिए खण्ड १२, पृ४ २५१ ।