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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वकीलने यहाँ भी विरोध किया; किन्तु मजिस्ट्रेटने यहाँ भी मेरी जमानत मंजूर कर ली और मुझे ५० पौंडके मुचलकेपर छोड़ दिया। मेरा मुकदमा २१ नम्बर तक मुल्तवी कर दिया गया । हिन्दुस्तानी व्यापारियोंने मेरे लिए एक ताँगा तैयार कर रखा था। मैं उसमें बिठाकर काफिलेसे मिला दिया गया जो उस समयतक तीन मील भी दूर नहीं गया होगा। अब तो लोगोंने और मैंने भी यह मान लिया कि हम शायद टॉल्स्टॉय फार्ममें पहुँच जायेंगे; किन्तु हमारा यह खयाल ठीक नहीं था । फिर भी लोग मेरी गिरफ्तारीके अभ्यस्त हो गये, यह बात भी मामूली नहीं थी। मेरे पाँचों साथी तो जेलमें ही रहे ।

अध्याय ४५

सभी जेलमें

हम जोहानिसबर्गके आसपास पहुँच चुके थे। पाठकोंको याद होगा कि हमने सारा रास्ता आठ दिनमें तय करनेका फैसला किया था। हम अबतक अपने निश्चयके अनुसार मंजिलें पूरी करते आये थे, इसलिए अब सिर्फ चार मंजिलें बाकी थीं। किन्तु जैसे-जैसे हमारा उत्साह बढ़ता था वैसे-वैसे सरकारको जागृति भी बढ़ती थी। वह हमें अपनी यात्रा पूरी करने देती और फिर गिरफ्तार करती इसमें उसकी दुर्बलता और अकुशलता मानी जाती। इसलिए यदि उसे इन लोगोंको गिरफ्तार करना था तो यात्रा पूरी होनेसे पहले गिरफ्तार करना था ।

सरकारने देखा कि यह काफिला मेरी गिरफ्तारीसे न निराश हुआ है और न डरा है। उसने कोई उत्पात भी नहीं किया। यदि वह उत्पात करता तो सरकारको गोलियाँ चलानेका मौका मिल जाता। जनरल स्मट्सके लिए तो हमारी दृढ़ता और शान्ति भी दुःखका कारण बन गई थी और उन्हें कहना पड़ा कि शान्त मनुष्योंको कोई कबतक सताये ? मरे हुएको कैसे मारा जा सकता है ? मरे हुएको मारनेमें कोई रस होता ही नहीं। इसीलिए शत्रुको जीता पकड़नेमें गौरव माना जाता है। यदि चूहा बिल्लीसे डरकर न भागे तो बिल्लोको कोई दूसरा शिकार ढूंढ़ना पड़ेगा। यदि सब मैमने सिहके पास जा बैठें तो सिंहको उन्हें खाना छोड़ना पड़ेगा। यदि सिंह सामना न करे तो क्या वह पुरुष-सिंह उसका शिकार करेगा? हमारी शान्ति और हमारे निश्चय में हमारी जीतका रहस्य छुपा था ।

गोखलेने तारसे अपनी यह इच्छा व्यक्त की थी कि पोलक हिन्दुस्तान आकर उनको भारत सरकार और साम्राज्य सरकारके सम्मुख दक्षिण आफ्रिकाकी स्थिति रखने में सहायता दें ।' श्री पोलक जहाँ होते वहाँ उपयोगी सिद्ध होते। यह उनकी खूबी ही थी । वे जो काम हाथमें लेते उसमें तन्मय हो जाते। इसलिए उन्हें हिन्दुस्तान भेजनेकी तैयारी की जा रही थी। मैंने तो उन्हें लिख दिया था कि वे चले जायें। परन्तु

१. देखिए खण्ड १२, पृष्ठ १११, ११३-१४ तथा १३२ ।

२. पत्र उपलब्ध नहीं है।