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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

थे। वे जानते थे कि हम इस कैदको अंकुश अथवा कष्ट नहीं मानते और वह हमारे लिए तो मुक्तिका द्वार ही है। इसीलिए वे हमें सब तरहकी छूट देते थे। इतना ही नहीं, बल्कि गिरफ्तारीमें सुविधा करने और समयकी बचत करनेमें हमारी सहायता लेते तथा उसके लिए हमारा उपकार मानते । पाठकोंको इन प्रकरणोंमें दोनों तरहके उदाहरण मिलेंगे।

में पहले ग्रलिंगस्टाड ले जाया गया और फिर वहाँसे बाल्फोर होकर हीडेल- बर्ग। मैंने रात यहीं बिताई ।

हमारा यात्रीदल श्री पोलकके नेतृत्वमें बढ़ता चला गया और रातको ग्रेलिंग- स्टाडमें ठहरा । यहाँ सेठ अहमद मुहम्मद काछलिया और सेठ अहमद भायात आ गये । जो-कुछ होनेवाला था उन्हें उसकी खबर मिल गई थी। मेरे साथ ही काफिलेको भी गिरफ्तार करनेका इन्तजाम कर लिया गया था। इसलिए श्री पोलकने खयाल किया कि वे काफिलेको ठिकाने लगाकर एक दिन देरसे जाकर भी डर्बनसे हिन्दुस्तानके लिए जहाज पकड़ लेंगे। किन्तु ईश्वरने तो दूसरी ही बात सोच रखी थी।

१० तारीखको ९ बजेके करीब यात्री-दल बाल्फोर पहुँचा। वहाँ उसको ले जानेके लिए तीन विशेष गाड़ियाँ खड़ी हुई थीं। दलके लोगोंने यहाँ कुछ हठ किया । उन्होंने कहा, 'गांधीको बुलायें। वे कहेंगे तो हम गिरफ्तार होकर गाड़ीमें बैठ जायेंगे।' उनका यह हठ अनुचित था । यदि वे हठ न छोड़ते तो सारी बाजी ही विगड़ जाती और सत्याग्रहियोंकी शक्ति घटती। उन्हें जेल जानेमें गांधीकी क्या जरूरत थी ? सैनिक क्या कहीं सेनापतिका चुनाव करता है ? वह क्या किसी एक ही आदमीका हुक्म माननेका हठ कर सकता है ? श्री चैमनेने इन लोगोंको समझानेमें श्री पोलक और सेठ काछलियाकी सहायता ली। वे बड़ी मुश्किलसे यह बात समझा सके कि यात्रियोंका उद्देश्य तो जेल जाना ही है और जब सरकार उनको गिरफ्तार करनेके लिए तैयार हो तो उन्हें उसके कदमका स्वागत करना चाहिए। हमारी सज्जनता इसीमें है और लड़ाईका अन्त भी यही है। मेरी इच्छा इससे भिन्न हो ही नहीं सकती, लोगोंको यह बात समझ लेनी थी। अन्तमें वे इस बातको समझ गये और गाड़ियोंमें जाकर बैठ गये ।

उधर मैं अदालत में पेश किया गया। मुझे ऊपर बताई गई घटनाओंकी कोई खबर नहीं थी। मैंने अदालतसे फिर मोहलत माँगी। मैंने बताया कि मुझे दो अदालतोंसे मोहलत मिल चुकी है। अब यात्रा थोड़ी ही बाकी रही है, मैंने यह भी बताया और प्रार्थना की कि या तो सरकार उन लोगोंको गिरफ्तार कर ले या मुझे उन्हें टॉल्स्टॉय फार्ममें सुरक्षित पहुँचानेकी अनुमति दे दे। अदालतने मेरी प्रार्थना तो स्वीकार नहीं की, किन्तु सरकारके पास तुरन्त भेज देनेकी बात स्वीकार कर ली । मैं इस बार डंडी ले जाया जानेवाला था। मुझपर मजदूरोंको नेटाल छोड़नेके लिए बहकानेके सम्बन्धमें खास मुकदमा नहीं चलना था; इसलिए मैं उसी दिनकी गाड़ीमें डंडी ले जाया गया ।

१. मूलमें यहाँ यह वाक्य है: "गिरफ्तार किये गये लोगोंको ले जानेके लिए हीडेलवर्गमें दो विशेष गाड़ियाँ खड़ी थीं। "