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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हम कमसे-कम इन तीन महीनोंमें तो साथ-साथ रह सकेंगे; किन्तु सरकारको यह अनुकूल नहीं पड़ता था ।

इस बीच कुछ दिनतक तो हम फोक्सरस्टकी जेलमें प्रसन्न रहे। यहां नित्य नये कैदी आते और हमारे पास बाहरकी खबरें लाते। इन सत्याग्रही कैदियोंमें एक हरबतसिंह नामका बूढ़ा था। उसकी उम्र ७५ वर्षसे अधिक थी। वह खानोंमें नौकर नहीं था। उसने अपनी गिरमिटकी मियाद कई साल पहले पूरी कर ली थी, इसलिए वह हड़ताली नहीं था। मेरी गिरफ्तारीके बाद हिन्दुस्तानी लोगोंमें उत्साह बहुत बढ़ गया था, इसलिए वे नेटालसे ट्रान्सवालमें आकर गिरफ्तार हो जाते थे। हरबर्तासिंह भी ट्रान्सवालमें प्रवेश करके गिरफ्तार हुआ था ।

मैंने हरबर्तासिंहसे पूछा, "आप क्यों जेलमें आये ? आप-जैसे बुड्ढोंको मैंने जेलमें आनेका निमन्त्रण नहीं दिया है।'

हरबर्तासिंहने उत्तर दिया, "मैं कैसे रह सकता था - जब आप, आपकी धर्मपत्नी और आपके बच्चे भी हम लोगोंके लिए जेल चले गये ?"

"लेकिन आपसे जेलके दुःख बर्दाश्त नहीं हो सकेंगे, आप जेलसे चले जायें। क्या मैं आपके छुड़वानेकी तजवीज करूँ ? "

"मैं हरगिज जेल नहीं छोड़ेंगा। मुझे एक दिन तो मरना है, पर मेरी ऐसी किस्मत कहाँ जो मेरी मौत जेलमें हो ।"

मैं ऐसी दृढ़ताको क्यों डिगाता? मैं प्रयत्न करता तो भी वह न डिगता । मेरा सिर इस निरक्षर ज्ञानीके सामने झुक गया। हरवतसिंह जैसा चाहते थे, वैसा ही हुआ। उनकी मृत्यु ५ जनवरी १९१४ को जेलमें ही हुई। उनका शव फोक्सरस्टसे डर्बन मँगाया गया था और उनके अग्नि-संस्कारमें सैकड़ों हिन्दुस्तानी सम्मिलित हुए थे। हरवतसिंह-जैसे आदमी इस लड़ाईमें एक-दो नहीं, अनेक थे। किन्तु जेलमें मरण पानेका गौरव केवल हरवतसिंहको ही मिला था; इसीलिए दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहके इतिहास के पन्नोंमें उनका उल्लेख किया गया है।

सरकार यह पसन्द नहीं कर सकती थी कि लोग इस प्रकार आकर्षित होकर जेलमें आयें। लोग जेलसे छूटकर मेरा सन्देश बाहर ले जायें, उसे यह बात भी सह्य नहीं थी। इसलिए उसने यह निश्चय किया कि हम तीनों अलग-अलग कर दिए जायें, हममें से एकको भी फोक्सरस्टमें न रहने दिया जाये और मुझे किसी ऐसी जेलमें ले जाकर रखा जाये जहाँ कोई भी हिन्दुस्तानी न जा सके। इसलिए मैं ऑरेंजियाकी राजधानी ब्लूमफॉन्टीनकी जेल भेज दिया गया। ऑरेंजियामें हिन्दुस्तानियोंकी आबादी शायद ५० से ज्यादा न थी । वे सब होटलोंमें नौकरी करते थे। ऐसे प्रदेशकी जेलमें कोई दूसरे हिन्दुस्तानी कैदीके होनेकी सम्भावना नहीं हो सकती थी। अतः इस जेलमें एक मैं ही हिन्दुस्तानी था। बाकी सब गोरे या हब्शी थे। मुझे इस बातका दुःख नहीं था; बल्कि मैंने इसमें सुख माना था। मुझे कुछ सुनना या देखना नहीं था । मुझे नया अनुभव मिलता, यह भी मेरी मनपसन्द बात थी। फिर मुझे पढ़नेका समय

१. खण्ड १२, पृष्ठ ३१६ भी देखिए ।