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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

तो सालोंसे -कहना चाहिए १८९३ से - नहीं मिला था। अब एक वर्ष पढ़नेका समय मिलेगा, यह जानकर मुझे तो प्रसन्नता ही हुई थी ।

मैं ब्लूमफॉन्टीन भेज दिया गया। वहाँ मुझे एकान्त तो बेहद मिला । दिक्कतें भी बहुत थीं, किन्तु वे सब सही जा सकती थीं। मैं इनका वर्णन करके पाठकोंका समय नहीं लूंगा। किन्तु इतना कह देना आवश्यक है कि उस जेलका डाक्टर मेरा मित्र बन गया था। जेलर तो अपना अधिकार-भर समझता था, किन्तु डाक्टर कैदि- योंके अधिकारोंकी रक्षाका प्रयत्न करता था। मैं उन दिनों केवल फलाहार करता था और दूध, घी या अन्न नहीं लेता था। मेरे भोजनमें केला, टमाटर, कच्ची मूंग- फलियाँ, नींबू और जैतूनका तेल होता था। यदि इनमें कोई भी चीज खराब आती तो भूखों ही मरना पड़ता; इसलिए डाक्टर विशेष ध्यान रखता था और उसने मेरे आहारमें बादाम, अखरोट या ब्राजील नट बढ़ा दिए थे। वह मेरे लिए लाए हुए सब फलोंको खुद देखता था। मुझे जो कोठरी दी गई थी उसमें हवाकी बहुत ही कमी थी। डाक्टरने बहुत जोर दिया कि मेरी कोठरीका दरवाजा खुला रहे, किन्तु उसकी बात चली नहीं। जेलरने यह धमकी दी कि दरवाजा खुला रहेगा तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। जेलर बुरा आदमी नहीं था, किन्तु उसका स्वभाव एक खास तरहका बन गया था। वह कैसे बदलता ? उसे काम पड़ता था खतरनाक कैदियोंसे। उसे भय था -- ·और सच्चा भय था - कि यदि वह मुझ जैसे भले कैदीसे व्यवहार-भेद करेगा तो दूसरे कैदी उसके सिर हो जायेंगे। मैं जेलरका दृष्टिकोण भली-भाँति समझ सकता था, इसलिए डाक्टर और जेलरके बीच मेरे सम्बन्धमें जो झगड़ा होता, उसमें मेरी सहानुभूति सदा जेलरके साथ ही रहती । जेलर अनुभवी था, सीधा-सादा आदमी था और अपना मार्ग साफ-साफ देखता था ।

श्री कैलनबैक प्रिटोरियाकी जेलमें भेजे गये और श्री पोलक जर्मिस्टनकी जेलमें ।

किन्तु सरकारकी ये सब योजनाएँ व्यर्थ थीं। आसमान फटे तब पैबन्द क्या काम दे सकता है ? नेटालके गिरमिटिए हिन्दुस्तानी पूरी तरह जग गये थे और उन्हें कोई भी शक्ति रोक नहीं सकती थी ।

अध्याय ४६

कसौटी

सोनेकी परख करनेवाला सोनेको कसोटीपर कसता है। इससे भी अधिक परीक्षा जरूरी हो तो उसे भट्टीमें डालता है, उसे पीटता है और उसमें कुछ मिलावट हो तो उसे अलग करके उसका कुन्दन बना देता है। ऐसी ही कसौटी हिन्दुस्तानियोंकी भी हुई; वे कसे गये, भट्टीमें डाले गये, और पीटे गये । और जब वे कसौटीपर खरे उतरे तब उनको ठीक कीमत समझमें आई ।

यात्री दलके लोग विशेष गाड़ीमें बिठाकर ले जाये गये तो किसी बन-भोजनके लिए नहीं, बल्कि निहाईपर रखकर पीटे जानेके लिए। रास्ते में उनके खाने-पीनेका कोई

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