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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इन्तजाम नहीं किया गया । उनपर नेटालमें पहुँचते ही मुकदमा चलाया गया और उनको कैदकी सजायें दे दी गईं। ऐसा होगा, यह खयाल तो था ही। सभी यह चाहते भी थे। किन्तु हजारों लोगोंको जेलम रखनेका अर्थ था खर्च बढ़ाना और हिन्दुस्तानियों- का मनचाहा करना। इससे कोयले की खाने आदि भी बन्द रहतीं। यदि ऐसी स्थिति लम्बे अरसेतक चलती तो उक्त तीन पौंडी कर रद करना ही पड़ता। इसलिए संघ सरकारने एक नई युक्ति सोची । उसने गिरमिटियोंको, वे जिस-जिस जगहसे आये थे, उन्हीं जगहोंमें वापस भेज दिया और एक नया कानून बनाकर उन जगहोंको ही जेलोंका रूप दे दिया और खानोंके गोरे नौकरोंको जेलोंका वार्डर नियुक्त कर दिया। उसने ऐसा करके मजदूरोंने जो काम छोड़ा था उनसे जबरदस्ती वही काम कराया और खानोंमें काम फिर चालू हो गया । गुलामी और नौकरीमें यह अन्तर होता है कि यदि नौकर नौकरी छोड़े तो उसपर दीवानी अदालत में दावा दायर किया जा सकता है, किन्तु यदि गुलाम काम छोड़े तो उसे जबरदस्ती कामपर वापस लाया जा सकता है। इस तरह अब मजदूर पूरी तरह गुलाम बन गये।

किन्तु इतना ही नहीं हुआ। मजदूर तो वीर थे। उन्होंने खानों में काम करनेसे साफ इनकार कर दिया। फलस्वरूप उन्हें बेंतोंकी मार खानी पड़ी। जो उद्धत मनुष्य एक क्षणमें अधिकारी बन बैठे थे, उन्होंने उन्हें ठोकरें लगाईं, उनको गालियां दीं और उनपर दूसरे अत्याचार किये । इन सबका कोई लेखा-जोखा नहीं रखा जा सका। किन्तु इन गरीब मजदूरोंने ये सब कष्ट धीरजसे सहन किये। इन अत्याचारोंकी खबरें हिन्दु- स्तानमें तारोंसे भेजी गईं । ये सब तार गोखलेको भेजे जाते थे; यदि उनको एक दिन भी ब्यौरेवार तार न मिलता तो वे स्वयं सीधी पूछताछ करते। वे उस समय बहुत बीमार थे; उन्होंने उसी हालत में इन तारोंसे मिली खबरोंका प्रचार किया । किन्तु उन्होंने दक्षिण आफ्रिकाके मामलोंकी देखभाल स्वयं करनेका आग्रह रखा और उसमें रात और दिनका कोई खयाल नहीं रखा । परिणामतः सारा हिन्दुस्तान भड़क उठा और दक्षिण आफ्रिकाका प्रश्न हिन्दुस्तानमें एक मुख्य प्रश्न बन गया।

इसी समय लॉर्ड हार्डिंगके प्रसिद्ध भाषणसे दक्षिण आफ्रिका और इंग्लैंडमें बड़ी खलबली मची । वाइसराय अन्य उपनिवेशोंकी खुली आलोचना नहीं कर सकता, किन्तु लॉर्ड हार्डिगने तीव्र आलोचना की; इतना ही नहीं उन्होंने सत्याग्रहियोंका पूरा पक्ष लिया और सविनय कानून भंगका समर्थन किया । इंग्लैंडमें लॉर्ड हार्डिगके इस साहसकी तीव्र आलोचना की गई; किन्तु फिर भी लॉर्ड हार्डिगने इसपर पश्चात्ताप प्रकट नहीं किया, बल्कि अपने कार्यको उचित ही बताया। उनकी इस दृढ़ताका प्रभाव बहुत अच्छा हुआ ।

अब हम इन खानों में कैद किये हुए दुःखी और साहसी मजदूरोंको छोड़कर एक क्षणके लिए बाहर नेटालके अन्य भागोंकी स्थितिपर दृष्टिपात करें।

१. अंग्रेजीमें यहाँ यह वाक्य इस प्रकार है: "उन्हीं दिनों ( दिसम्बर १९१३ में) लॉर्ड हार्डिगने मद्रासमें अपना प्रसिद्ध भाषण दिया जिससे दक्षिण आफ्रिका " वस्तुत: यह भाषण २४ नवम्बर, १९१३ को दिया गया था।