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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

खानें नेटालके उत्तर-पश्चिम भागमें पड़ती है। किन्तु सबसे अधिक हिन्दुस्तानी मजदूर नेटालके उत्तरी और दक्षिणी तटोंपर काम करते थे। उत्तरी तटपर फीनिक्स, वेरूलम और टोंगाट आदि स्थित हैं। इनमें काम करनेवाले मजदूरोंसे मेरा बहुत अच्छा सम्पर्क हुआ था और उनमें से बहुतसे मेरे साथ बोअर युद्धमें थे। किन्तु डर्बनसे लेकर इसीपिंगो और अमजिन्टोतक दक्षिणी तटपर काम करनेवाले मजदूरोंसे मेरा सम्पर्क उतना अधिक नहीं हुआ था और इधर मेरे साथी भी बहुत कम थे। फिर भी वहाँ जेल जाने और हड़ताल करनेकी बात बिजलीकी तरह तेजीसे फैली। दोनों ही जगहसे हजारों मजदूर अपने-आप काम छोड़कर निकल चले। कुछने यह सोचकर कि लड़ाई लम्बी चलेगी और उन्हें कोई खाना नहीं देगा, अपना सामान भी बेच डाला था। मैंने जेल जाते समय साथियोंको चेता दिया था कि वे और ज्यादा मज- दूरोंको हड़ताल करनेसे रोकें। मैंने आशा की थी कि केवल खान-मजदूरोंकी सहायतासे लड़ाई जीती जा सकेंगी। यदि सब मजदूर यानी लगभग साठ हजार लोग हड़ताल कर देते तो उनका गुजारा मुश्किल होता। इतने लोगोंको कूचमें ले जानेकी सामग्री नहीं थी। न इतने कार्यकर्ता थे और न पर्याप्त धन । फिर इतने लोगोंको इकट्ठा करके उपद्रव करनेसे रोकना अशक्य होता ।

किन्तु जब बाढ़ आती है तब क्या किसीके रोके रुकती है? मजदूर सभी जगह अपने-आप निकल पड़े और ऐसी जगहोंमें स्वयंसेवक भी अपने-आप संगठित हो गये ।

अब सरकारने बन्दूक चलाने की नीति अख्तियार की। उसने लोगोंको हड़ताल करनेसे जबरदस्ती रोका । घुड़सवारोंने उनका पीछा किया और उनको खदेड़कर उनकी जगहोंमें पहुँचा दिया । हुक्म था कि लोग जरा भी उपद्रव करें तो उनपर गोली चला दी जाये। उन लोगोंने वापस जानेका विरोध किया। कुछ लोगोंने पत्थर भी फेंके। फलतः गोलियां चलाई गईं। बहुत लोग घायल हुए और दो-चार आदमी मरे भी। किन्तु इससे लोगोंका उत्साह कम नहीं हुआ। वेरूलमके पास स्वयंसेवकोंने लोगोंको मुश्किलसे हड़ताल करनेसे रोका । अवश्य ही सब लोग काम करने नहीं गये। कुछ भयके कारण छुप गये और कामपर नहीं लौटे।

। 16 यहाँ एक घटनाका उल्लेख करने योग्य है। वेरूलममें बहुतसे मजदूर काम छोड़- कर निकल आये थे । वे किसी भी तरह कामपर वापस नहीं जाते थे । जनरल ल्यूकिन अपने सैनिकोंके साथ वहां मौजूद थे और गोली चलानेका हुक्म देनेके लिए तैयार थे । स्वर्गीय पारसी रुस्तमजीका छोटा बहादुर बेटा सोराबजी, जिसकी उम्र मुश्किलसे अठारह वर्षकी होगी, डर्वनसे वहाँ पहुँच गया था। उसने जनरल ल्यूकिनके घोड़ेकी लगाम पकड़कर कहा, आप गोली चलानेका हुक्म नहीं दे सकते; मैं अपने लोगोंको शान्तिसे कामपर जानेका जिम्मा लेता हूँ। " जनरल ल्यूकिन उस नवयुवककी वीरतापर मुग्ध हो गया और उसने उसे प्रेमबलका प्रयोग करनेकी अनुमति दे दी। सोराबजीने लोगोंको समझाया । उसकी बात लोगोंकी समझमें आ गई और वे काम- पर वापस चले गये। इस तरह एक नवयुवककी सूझबूझ, निर्भयता और प्रेमसे रक्तपात होते-होते रुक गया ।

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