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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सर्वथा मुक्त न थे । उन्होंने आते ही कौममें फूट डालना और सत्याग्रहियोंको भय दिखाना आरंम्भ कर दिया। उनसे प्रिटोरियामें मेरी जो पहली भेंट हुई, मुझपर उसका प्रभाव अच्छा नहीं पड़ा। उन्होंने मुझे भयभीत करनेके लिए जो तार दिए थे मैंने उनसे उनकी चर्चा भी की। मुझे तो सबके साथ एक ही प्रकारसे अर्थात् स्पष्टता और सचाईसे ही व्यवहार करना था, इसलिए हम दोनों मित्र हो गये। किन्तु मैंने बहुत बार अनुभव किया है कि जो डरता है उसे अधिकारी डराते ही हैं, किन्तु जो सीधा है और डरता नहीं उससे वे सीधा व्यवहार करते हैं।

इस तरहसे प्राथमिक समझौता हो गया और सत्याग्रह अन्तिम रूपसे स्थगित कर दिया गया। इससे बहुतसे अंग्रेज मित्रोंको प्रसन्नता हुई और उन्होंने मुझे अन्तिम समझौते में सहायता देनेका आश्वासन भी दिया । कौमसे इस समझौतेको स्वीकार करानेका काम स्वभावतः ही कठिन था । जो उत्साह उत्पन्न हुआ था वह समाप्त हो जाये यह कोई नहीं चाहता था। फिर जनरल स्मट्सका विश्वास कोई कैसे करता ? कुछ लोगोंने १९०८ के समझौतेकी याद दिलाई और कहा, "जनरल स्मट्सने एक बार कौमको धोखा दिया है। उसने आपपर बहुत बार नये-नये मुद्दे उठानेका आरोप किया है और कौमको गम्भीर संकटोंमें से निकलना पड़ा है, किन्तु आप फिर भी नहीं समझे, यह कैसी दुःखजनक बात है ? यह आदमी आपको फिर धोखा देगा और आप फिर सत्याग्रहकी बात करेंगे । उस समय आपका विश्वास कौन करेगा? लोग इस तरह बार-बार जेलमें जायें और बार-बार धोखा खायें, यह कैसे हो सकता है ? जनरल स्मट्स-जैसे आदमीके साथ तो एक ही समझौता हो सकता है । जो कुछ मांगा है वह उससे ले लिया जाये; उससे वचन नहीं लेना चाहिए। जो आदमी वचन देकर मुकर जाये उसे उधार कैसे दिया जा सकता है ? "

मैं जानता था कि ऐसी ही बातें बहुत लोग कहेंगे। इसलिए मुझे इससे आश्चर्य नहीं हुआ । सत्याग्रहीको चाहे कितनी ही बार धोखा खाना पड़े फिर भी जबतक अविश्वास करनेका कोई स्पष्ट कारण न हो तबतक तो वह विश्वास करता ही है। जिसने दुःखको सुख बना लिया हो, वह अविश्वासका कोई कारण न होनेपर केवल कष्टोंके भयसे त्रस्त होकर अविश्वास नहीं करता; बल्कि अपनी शक्तिपर विश्वास रखकर विरोधी पक्ष धोखा दे तो उसके सम्बन्धमें निश्चिन्त रहता है और चाहे कितनी ही बार धोखा दिया जाये फिर भी अपना विश्वास बनाये रखता है और यह मानता है कि इससे सत्यका बल बढ़ेगा और विजय निकट आयेगी। इसलिए मैं जगह-जगह सभाएँ करके लोगोंको समझौतेको स्वीकार करनेके लिए तैयार कर सका और लोग भी सत्याग्रहका मर्म अधिक समझने लगे। इस बारके समझौतेमें श्री एन्ड्रयूज मध्यस्थ और साक्षी थे। इसी तरह वाइसरायके प्रतिनिधिरूप सर बेंजामिन रॉबर्टसन भी मध्यस्थ और साक्षी थे। इसलिए इस समझौते के मिथ्या होने की आशंका बहुत ही कम थी । यदि में समझौता न करनेका हठ करता तो उलटा कोमका दोष माना जाता और छः महीनेके संघर्षके बाद जो विजय मिली थी उसे प्राप्त करने में अनेक विघ्न

१. देखिए खण्ड १२, पृष्ठ ३२७-३०.।