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दक्षिण आफ्रिका सत्याग्रहका इतिहास

आते । सत्याग्रही किसीको कभी अँगुली उठानेका कारण नहीं देता, इसी अनुभवके आधारपर कहा गया है, 'क्षमा वीरस्य भूषणम्।' अविश्वास भी डरपोकपनकी निशानी है । सत्याग्रहमें अभय मौजूद रहता ही है । जो निर्भय है उसे डर कैसा और जहाँ उद्देश्य ही विरोधीका विरोध दूर करना हो, विरोधीको नष्ट करना नहीं, वहाँ अविश्वास कैसा ?

इसलिए समझौता कर लेनेके बाद कौमको केवल संघ-संसदके अधिवेशनकी प्रतीक्षा करनी रह गई । इस बीच उक्त आयोग अपना काम करता रहा । उसके सम्मुख बहुत कम हिन्दुस्तानी गवाही देनेके लिये गये। इससे यह पक्का सबूत मिला कि उस समय सत्याग्रहियोंका कौमपर कितना अधिक प्रभाव था । सर बेंजामिन रॉबर्टसनने बहुतसे हिन्दुस्तानियों को समझाया कि वे आयोगके सम्मुख गवाही दें; किन्तु जो लोग लड़ाईका बहुत विरोध करते थे उनके अतिरिक्त बाकी सब अडिग रहे। इस बहिष्कार- का प्रभाव व्यर्थ नहीं गया। इससे आयोगका काम बहुत संक्षिप्त हो गया और उसने अपनी रिपोर्ट तुरत-फुरत प्रकाशित कर दी।' आयोगने अपनी रिपोर्ट में हिन्दुस्तानी कौमके सहायता न देनेकी अवश्य ही कड़ी आलोचना की और सिपाहियोंके दुर्व्यवहारके आरोपका उल्लेखतक नहीं किया। किन्तु कौमने जो-जो माँगें रखी थीं आयोगने उन सबको स्वीकार करने की सिफारिश की। उसकी सिफारिशें ये थीं : तीन पौंडी कर रद कर दिया जाना चाहिए, और विवाहके सम्बन्धमें हिन्दुस्तानियोंकी माँग स्वीकार की जानी चाहिए। उसने दूसरी भी छोटी-मोटी रियायतें देनेकी सिफारिशें की और उनपर शीघ्रतासे अमल करनेका अनुरोध किया । इस तरह आयोगकी रिपोर्ट, जैसा जनरल स्मट्सने कहा था अनुकूल निकली । श्री एन्ड्रयूज इंग्लैंडको रवाना हो गये; सर बेंजामिन रॉबर्टसन भी वहांसे चल पड़े । मुझे विश्वास दिलाया गया था कि आयोगकी रिपोर्टके अनुसार कानून बनाया जायेगा। यह कानून कैसा था और किस तरह बनाया गया इस सम्बन्धमें हम अगले प्रकरणमें विचार करेंगे ।

अध्याय ५०

लड़ाईका अन्त


आयोगकी रिपोर्टके बाद कुछ समयमें ही जिस कानूनके द्वारा समझौतेको कार्य- रूप दिया जाना था, उसका मसविदा दक्षिण आफ्रिकी संघके गजटमें प्रकाशित किया गया। इस मसविदेके प्रकाशित होते ही मुझे केपटाउन जाना पड़ा । संघकी विधान- सभाकी बैठक वहीं हो रही थी और अब भी वहीं होती है। भारतीय राहत विधेयकर्म ९ धाराएँ थीं। वे 'नवजीवन 'के दो कालमोंमें आ सकती है। इसका एक भाग हिन्दुस्तानियोंके विवाहोंके सम्बन्धमें था । इसका अर्थ यह था कि जो विवाह हिन्दुस्तान में वैध माना जाता है वह दक्षिण आफ्रिकामें भी वैध माना जायेगा; किन्तु

१. ७ मार्चको ।

२. भारतीय राहत-अधिनियम, १९१४ के लिए देखिए खण्ड १२, परिशिष्ट २५ ।