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दक्षिण आफ्रिका के सत्याग्रह का इतिहास

इस बात का साक्षी में स्वयं हूँ। तभी तो यह जमी-जमाई बुराई छ: महीने में ही समाप्त हो गई।

चौथी लड़ाई थी अहमदाबाद के मिल-मजदूरों की। इस लड़ाई का इतिहास गुजरात भली-भांति जानता है। यहाँ मजदूरों ने कैसी शान्ति रखी! नेताओं के सम्बन्ध में तो मुझे कहना ही क्या है ? फिर भी मैंने इस लड़ाई में जो जीत हुई उसे सदोष माना है, क्योंकि मजदूरों से उनकी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए मैने जो उपवास किया था उससे मिल-मालिकों पर कुछ दबाव पड़ा था। उनमें और मुझमें जो स्नेह था उसके कारण उनपर मेरे उपवास का प्रभाव होना अवश्यम्भावी था। इसके बावजूद इस लड़ाई का सार स्पष्ट है। यदि मजदूर शान्ति से दृढ़ रहें तो उनकी जीत अवश्य होती है और वे मालिकों के मन को जीत लेते हैं। किन्तु ये मजदूर मालिकों के मन को नहीं जीत सके, क्योंकि वे मन, वचन, कर्म से निर्दोष - शान्त – रहे, यह नहीं कहा जा सकता। वे कर्मणा शान्त रहे यह कहना भी ज्यादा ही होगा।

पांचवीं लड़ाई थी खेड़ा की। इसमें सभी नेताओं ने पूर्ण सत्य का पालन किया था, यह नहीं कहा जा सकता। उन्होंने शान्ति तो अवश्य रखी थी। किसान वर्ग की शान्ति मजदूरों-जैसी केवल कर्मणा शान्ति ही थी। इसलिए केवल मानरक्षा ही हुई। लोगों में भारी जागृति भी हुई। किन्तु खेड़ा के लोगों ने शान्ति का पाठ पूरा नहीं पढ़ा; मजदूरो ने शान्ति का शुद्ध स्वरूप नहीं समझा; इसलिए जब रौलट कानुन के विरुद्ध सत्याग्रह गया किया तो लोगों को कष्ट सहने पडे, मझे अपनी हिमालय-सी बड़ी भूल स्वीकार करनी पड़ी, स्वयं उपवास करना पड़ा और दूसरों से उपवास करवाना पड़ा।

छठी लड़ाई रौलट कानून के विरुद्ध हुई । इस लड़ाई में हम में जो दोष थे वे स्पष्ट उभर आये। किन्तु हमारा मुख्य आधार सच्चा था। मैंने अपने सब दोष स्वीकार किये और उनका प्रायश्चित किया। रौलट कानून पर अमल तो कभी नहीं किया जा सकता था और अन्त में सरकार ने वह काला कानून रद्द भी कर दिया। हमने इस लड़ाई से बहुत बड़ा पाठ सीखा।

सातवीं लड़ाई खिलाफत और पंजाब के अन्यायों के निराकरण और स्वराज्य की प्राप्ति की है। यह इस समय चल रही है। मेरा अटल विश्वास है कि यदि इस लडाई में एक सत्याग्रही भी दृर रहेगा तो हम अवश्य जीतेंगे।

किन्तु वर्तमान संघर्ष महाभारत है। इस लड़ाई की तैयारी किस तरह अपने-आप होती चली गई उसका क्रम में बता चुका हूँ। वीरम गाँव की चुंगी की लड़ाई के वक्त मुझे क्या पता था कि दूसरी लड़ाइयां भी लड़नी पड़ेंगी। और वीरम गांव की लड़ाई के सम्बन्ध में मुझे दक्षिण आफ्रिका में क्या पता था? सत्याग्रह की यही खूबी है। वह हमारे पास अपने-आप आता है। हमें उसको खोजने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता।

१. चम्पारन कृषीय जांच समिति की जाँच के फलस्वरूप १९१७ में चम्पारन कृषीय विधेयक पारित कर दिया गया था। देखिए खण्ड १३, पृष्ठ ६२०-२२ ।

२. देखिए खण्ड १४; तथा महादेव देसाई द्वारा लिखित एक धर्म युद्ध नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद ।

३.देखिए खण्ड १४।