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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सत्याग्रहकी यह खूबी उसके सिद्धान्तमें ही निहित है। जहाँ छिपा हुआ कुछ नहीं है, जिसमें कोई चालाकी नहीं करनी पड़ती और जिसमें असत्य तो आ ही नहीं सकता, ऐसा यह धर्मयुद्ध अनायास ही प्राप्त होता है और धर्मशील व्यक्ति उसके लिए सदा कटिबद्ध ही रहता है। जिसकी योजना पहलेसे करनी पड़े, वह धर्मयुद्ध नहीं। धर्मयुद्धका संयोजक और संचालक तो ईश्वर है। वह युद्ध ईश्वरके नामपर ही चल सकता है और उसमें ईश्वर तभी सहायता करता है जब सत्याग्रहीके सारे आधार हिल जाते है, वह निर्बल हो जाता है और उसके चारों ओर अन्धेरा छा जाता है। ईश्वर तभी सहायता करता है जब मनुष्य अपने-आपको एक रज-कणसे भी तुच्छ मानता है। राम निर्बलको ही बल देता है।

इस सत्यका अनुभव तो हमें अभी होना शेष है। इसीलिए मैं यह मानता हूँ कि 'दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास' हमारे लिए सहायक है।

पाठक देखेंगे कि वर्तमान लड़ाईमें हमें जो अनुभव हुए है उनसे मिलते-जुलते अनुभव दक्षिण आफ्रिकामें भी हुए थे। हम दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहके इतिहाससे यह भी जानेंगे कि हमारी इस लड़ाईमें अभीतक तो निराश होनेका एक भी कारण नहीं है। इसमें जीतनेके लिए केवल इतना ही आवश्यक है कि हम अपनी योजनापर दृढ़ बने रहें।

मैं इस प्रस्तावनाको जुहूमें बैठा हुआ लिख रहा हूँ। इस इतिहासके ३० अध्याय मैंने यरवदा जेलमें लिखे थे। मैं उनको बोलता गया था और भाई इन्दुलाल याज्ञिक उनको लिखते गये थे। शेष अध्याय अब लिखना चाहता हूँ। मेरे पास जेलमें सहायताके लिए पुस्तकें न थीं। मैं यहाँ भी उन्हें इकट्ठा नहीं करना चाहता। ब्योरेवार इतिहास लिखनेका मुझे अवकाश नहीं है; और वैसा उत्साह अथवा इच्छा भी नहीं है। मैं इतना ही चाहता हूँ कि यह इतिहास वर्तमान संघर्ष में सहायक बन सके और जो साहित्यिक इस इतिहासको फुर्सतसे ब्यौरेवार लिखना चाहें इससे उनका मार्गदर्शन हो । यद्यपि मैंने यह इतिहास बिना किसी पुस्तककी सहायताके लिखा है तो भी मेरी प्रार्थना यह है कि कोई ऐसा न समझे कि इसमें दिया गया कोई तथ्य ठीक नहीं है। अथवा इसमें कहीं अत्युक्ति हुई है।

मो० क० गांधी

जूहू

सम्वत् १९८०, फाल्गुन वदी १३,

२ अप्रैल, १९२४ ।

(२)

पाठक जानते हैं कि मैं उपवास और दूसरे कारणोंसे दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहके इतिहासको लिखनेका काम जारी नहीं रख सका था। उसे मैं इस अंकसे फिर शुरू कर रहा हूँ। मुझे आशा है कि मैं इसको अब निर्विघ्न पूरा कर सकूँगा।

१. मूलमें यहाँ बुधवार लिखा है।

२. १७-९-१९२४ से ८-१०-१९२४ तक २१ दिनका उपवास; देखिए. खन्ड २५ ।