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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन इतना ही काफी नहीं है। आरोप अभी अधूरा है। क्या तुम जानते हो कि कुमारी स्लेड अपना सब-कुछ छोड़कर यहाँ आई हुई हैं ? क्या तुम जानते हो कि हमारे उद्देश्यकी सिद्धिके लिए किया गया उस महिलाका त्याग हममें से किसीके भी त्यागसे बढ़-चढ़कर है ? क्या तुम जानते हो कि वह यहाँ सीखनेके लिए, अध्ययन करने के लिए और सेवा करनेके लिए आई है और उसने इस देशके लोगोंकी सेवामें और इस प्रकार अपने देशकी सेवामें अपना समय लगा देनेका निश्चय किया है और उसके देशमें कुछ भी क्यों हो, उससे वह यहाँ अपने कर्तव्य पालनसे जरा भी नहीं डिगेगी? इसलिए उसका प्रत्येक क्षण दूना महत्त्व रखता है और यह हमारा फर्ज है कि हमसे जितना भी बन सके, उसे दें। वह हमारे सम्बन्धमें सब-कुछ जानना चाहती है और इसलिए उसे हिन्दुस्तानी पूरी तौरपर सीख लेनी चाहिए। जबतक हम लोग अपने समयका अच्छेसे अच्छा उपयोग करनेमें उसके सहायक न होंगे तबतक वह यह सब कैसे कर सकेगी वह पूरे तौरपर हमारी मदद करनेको तैयार हो सकती है, परन्तु हमारा कर्त्तव्य तो यही है कि हम उसे जितना दे सकें दें। हमारा समय धार्मिक धरोहर जरूर है, लेकिन उसका समय तो उससे भी कहीं अधिक पवित्र धरोहर है। इसलिए उससे फ्रेंच सीखनेके शौकको पूरा करने के बजाय तुम उसे संस्कृत, हिन्दी या ऐसी ही दूसरी चीज सिखानेमें रोजाना एक घंटा लगाया करो ।

इसका मैं कुछ भी उत्तर न दे सका। मेरा सिर लज्जासे नीचा हो गया । मैंने चुप रहकर हो अपने दोषको पूरे तौरपर स्वीकार कर लिया। इसके लिए क्या कोई प्रायश्चित भी मुझे करना चाहिए ? उनसे यह पूछना तो उचित न था। मुझे लगा कि मुझे ही उसका निश्चय करना चाहिए। लेकिन उनकी कभी न चूकने- वाली अनुकम्पाने मुझे क्षमा कर दिया और उन्होंने स्वयं मुझे प्रायश्चित्त बता दिया, वे बोले :

कल फिर उसी समय उसके पास जाना और अपनी गलती उसपर प्रकट करनेके अनन्तर फ्रेंच पढ़नेके बजाय उसके साथ हिन्दीके भजन ही पढ़ना।

(जाँचा और सुधारा । प्रकाशनके लिए मंजूरी देता हूँ पर बहुत संकोचके साथ -- मो० क० गांधी)

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २६-११-१९२५