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१५. पत्र: मु० अ० अन्सारीको

सत्याग्रह आश्रम

साबरमती

२६ नवम्बर, १९२५

प्रिय श्री अन्सारी,

आपका पत्र मिला । क्या आप कौंसिलके काम और 'लीग ऑफ नेशन्स ' के अध्यक्षको तार भेजने में कोई अन्तर नहीं मानते। व्यक्तिगत रूपसे में कौंसिल प्रवेशका इतना ही विरोधी आज भी हूँ, जितना कि पहले था । आप इतमीनान रखें कि पटनाके प्रस्तावमें लगभग अनिवार्य हो जानेपर ही मैंने हिस्सा लिया था, उसमें पसन्द करने न करनेका प्रश्न ही नहीं था। लगभग अनिवार्य कहनेमें अर्थ यह है कि मैं कांग्रेस प्रजातन्त्रवादी स्वरूपको मानता हूँ। जब मैंने देखा कि मैं स्वराज्यवादि- योंको यह नहीं समझा सकता कि कौंसिल प्रवेश एक गलती करना ही होगा, और जब मैंने यह भी देखा कि मेरे अच्छेसे अच्छे मित्र और सहयोगी स्वराज्यवादी बन गये हैं तब मैंने सोचा कि मैं अन्य राजनैतिक दलोंकी ओर झुकनेके बजाय अपनी राय उन्हींके पक्षमें दूं। इस तरह, यद्यपि व्यक्तिगत रूपसे मैं 'लीग ऑफ नेशन्स' से कोई अपील करना तबतक नापसन्द करूंगा जबतक हम स्वयं समर्थ नहीं हो जाते; किन्तु फिर भी कांग्रेसमें यदि दो दल होते जिनमें से एक फ्रांसीसियोंके अत्याचारका समर्थन करता और दूसरा पीड़ितोंकी सहायता करना चाहता तो मैं दूसरे दलको ही अपना सहयोग देता ।

आपको पता नहीं है कि लोग सही रास्तेसे कितना भटक गए हैं। मैं जानता हूँ कि अपीलके जवाबमें मुझे १०० रु० से अधिक नहीं मिलेंगे, तो फिर अपना मजाक उड़वानेसे क्या लाभ ? इस समय जो आडम्बर और असत्य हमें घेरे है, उससे मैं बेहद त्रस्त हूँ। इसलिए खादी और अस्पृश्यताके छोटेसे काम तथा जो ढंग लोगोंको नापसन्द है उस ढंगसे गोरक्षाके कामके अलावा किसी भी अन्य कामके लिए मुझे भूल ही जायें । मैं स्वीकार करता हूँ कि किसी भी अन्य समस्याको सफलतापूर्वक सुलझानेमें मैं सर्वथा असमर्थ हूँ ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०६६८) की फोटो-नकलसे ।