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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जिस शालाकी रक्षा बिना किसी प्रयत्नके ही की जा सकती है, क्या उसकी रक्षा नहीं करेंगे ?

[ गुजराती से ]

नवजीवन, २९-११-१९२५

२० दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय

दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके प्रश्नपर लोगोंका दिन-प्रतिदिन ज्यादा से ज्यादा ध्यान आकर्षित हो रहा है; क्योंकि एक ओर तो श्री एन्ड्रयूज वहाँ पहुँच रहे हैं और दूसरी ओर इस लेखके प्रकाशित होनेके पहले यहाँसे दक्षिण आफ्रिका जानेवाले सरकारी प्रतिनिधि रवाना हो चुकेंगे और तीसरी ओर थोड़े दिनोंमें दक्षिण आफ्रिका के भारतीयों के प्रतिनिधि यहाँ आ जायेंगे । इसलिए सामान्य रूपसे जनताका ध्यान इस प्रश्नकी ओर आकर्षित होना ही चाहिए ।

दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंके सिरपर तलवार लटक रही है। सीधे और प्रामाणिक ढंगसे भारतीयोंको जबर्दस्ती दक्षिण आफ्रिकासे निर्वासित करनेकी हिम्मत वहाँकी सरकारमें नहीं है; वह उन्हें अप्रत्यक्ष रूपसे परेशान करके दक्षिण आफ्रिकासे चले जानेके लिए मजबूर करनेकी युक्तियाँ रच रही है। जो बाकी रहेंगे वे नौकरी- पेशा मुट्ठीभर ऐसे ही भारतीय होंगे जिनको वहाँके गोरे लोग रखना चाहते हैं, जैसे खेतोंमें मजदूरी करनेवाले और घरोंमें रसोई करने तथा परोसनेवाले। व्यापारी और वे अन्य स्वतन्त्र भारतीय लोग जिनमें आत्मसम्मान है और जो उसका मूल्य समझते हैं, सरकार जैसी स्थिति उत्पन्न करना चाहती है, उसमें पलभर भी नहीं टिक सकते, क्योंकि वहाँके नये कानूनकी रूसे सरकार भारतीयोंके भूस्वामित्व, व्यापार और दक्षिण आफ्रिकामें एक प्रान्तसे दूसरे प्रान्तमें आने-जानेके अधिकारोंको लगभग छीन ही लेना चाहती है। यदि इन प्रश्नोंका निर्णय न्यायपूर्ण ढंगसे किया जाये तो भारतीयोंके लिए डरनेका कोई भी कारण नहीं है। उस हालतमें किसी प्रतिनिधिके यहाँसे दक्षिण आफ्रिका जाने और दक्षिण आफ्रिकासे यहाँ आनेकी जरूरत नहीं है। कोई भी निष्पक्ष न्यायाधीश भारतीयोंके ही पक्षमें अपना निर्णय देगा तथा उन्हें मुकदमेका खर्च भी दिलायेगा ।

लेकिन यहाँ तो न्याय तलवारका है, पशुबलका है। यहाँ समान हैसियतके लोगों- को समान भाग देनेकी नहीं, अपितु बलवानको निर्बलसे दो गुना देनेकी बात है । ब्रिटिश सरकार दक्षिण आफ्रिकी सरकारके अन्यायको भी सहन करेगी; बहुत हुआ तो अन्याय कम करनेकी प्रार्थना करेगी और यदि दक्षिण आफ्रिकी सरकार उसे स्वीकार नहीं करेगी तो चुप होकर बैठ रहेगी। दक्षिण आफ्रिका गोरोंकी मर्जीसे ब्रिटिश साम्रा- ज्यके अन्तर्गत है। इसके विपरीत भारत ब्रिटिश साम्राज्यके अन्तर्गत साम्राज्यवादी तल- वारके बलपर है। यह बात अनुभवी अंग्रेज भी मानते हैं; और यह अधिकांशत: सच भी है। यदि दक्षिण आफ्रिकाके गोरे चाहें तो वे आज ही अपनेको साम्राज्यसे अलग कर