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मेरा यह उपवास

ले सकते हैं। लेकिन भारतके पराधीन लोग कितना भी क्यों न चाहें तो भी ब्रिटिश सरकारको सम्मतिके बिना अपनेको साम्राज्यसे कदापि अलग नहीं कर सकते । जब वस्तुस्थिति ऐसी हैं तब दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंका वहां रहना भी दक्षिण आफ्रिकी सरकारकी कृपापर ही सम्भव है । बन्दीगृहमें पड़ा हुआ भारत दक्षिण आफ्रिकाके बन्दी भारतीयोंकी केवल इतनी ही मदद कर सकता है जितनी एक बन्दी दूसरे बन्दीकी । ऐसी दयनीय स्थितिमें इन सभी बन्दियोंका पुरुषार्थ ही उनकी मुक्तिका साधन हो सकता है । दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंका छुटकारा तभी सम्भव है जब वे पुरुषार्थ कर सकें और स्वयं पराधीन होनेपर भी स्वतन्त्र व्यक्तिके समान आचरण कर सकें । मनुष्य दूसरोंकी कृपापर कितने दिनतक टिक सकता है? कोई कृपा करते रहनेका दस्तावेज लिखकर नहीं देता । कृपा करनेवालेकी कृपा न रहे और तत्सम्बन्धी कोई दस्तावेज हो तो भी वह उसे रद्दी कागजकी टोकरीमें फेंक दे सकता है। फिर भी भारत जितना कर सकता है, उतना तो अवश्य करेगा। दक्षिण आफ्रिकासे आनेवाले प्रतिनिधियोंका स्वागत करना और उन्हें यथाशक्ति सहायता देना हमारा धर्म है । हमारा कमसे-कम कर्त्तव्य यह है कि हम इस धर्मका पालन करें।

आनेवाले अतिथियों में केपटाऊनके प्रख्यात मलायी डाक्टर अब्दुर्रहमान हैं। उनमें भारतीय रक्त भी है। दूसरे जेम्स गॉडफे हैं। ये बैरिस्टर हैं और एक भारतीय ईसाई शिक्षकके पुत्र हैं। तीसरे स्वर्गीय पारसी रुस्तमजीके वीर पुत्र सोराबजी हैं । ये कसे हुए सिपाही हैं, और जेल जा चुके हैं। 'दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास' पढ़नेवाले लोगोंको इनका परिचय होगा ही। इनका प्रवास और प्रयास सफल हो ।

[ गुजराती से ]

नवजीवन, २९-११-१९२५

२१. मेरा यह उपवास

३० नवम्बर, १९२५

हालका मेरा यह उपवास (सात दिनका) कल सुबह समाप्त होगा। मैंने चाहा था कि मेरे उपवास करनेकी बात लोगोंपर प्रकट न हो; मेरे प्रयत्नोंके बावजूद वह सम्भव नहीं हो सका। लोगोंने उसके सम्बन्धमें मुझसे कितने ही प्रश्न पूछे हैं और कुछ लोगोंने तो उसके प्रति अपना आवेशपूर्ण विरोध भी प्रकट किया है।

जनता मेरे स्वास्थ्यके सम्बन्धमें बिलकुल निश्चिन्त रहे । मैं आज उपवासके सातवें दिन लिख पा रहा हूँ, यह अपने आपमें कुछ कम नहीं है। लेकिन जबतक यह 'यंग इंडिया' के पाठकोंके हाथमें पहुँचेगा तबतक तो मैं अपने कामकाजमें लगनेकी आशा करता हूँ ।

चौथे दिन कुछ आशंका हुई थी; उस दिन काम करते हुए बहुत थकावट मालूम पड़ी थी। मैं अभिमानमें यह सोच रहा था कि इस अपेक्षाकृत छोटे उपवासके सातों दिन मैं बराबर काम कर सकूँगा। मुझे अपने प्रति न्यायदृष्टि रखते हुए यह भी