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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कह देना चाहिए कि साढ़े तीन दिनोंतक जो काम मैंने किया उसमें से बहुत-सा काम तो अनिवार्य था; उसका सम्बन्ध मेरे उपवासके कारणके साथ ही था। लेकिन ज्यों ही मुझे इस बातका अनुभव हुआ कि श्रम अत्यधिक सिद्ध हो रहा है, मैंने सब काम छोड़ दिया और आज सातवें दिन में चौथे दिनकी अपेक्षा अधिक स्वस्थ हूँ।

लेकिन जनताको मेरे उपवासोंको लेकर कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिए। उन्हें उनपर कोई ध्यान ही नहीं देना चाहिए। उपवास तो मेरे जीवनके अंग हो गये हैं। उदाहरणार्थ यदि में उपवासोंके बिना काम चला सकूँ तो फिर अपनी आँखोंके बिना भी चला सकता हूँ। बाह्य जगतके लिए जैसे आँख है अन्तर्जगतके लिए उपवास भी वैसे ही हैं। मैं कितना भी क्यों न चाहूँ कि मेरा यह उपवास मेरे जीवनका अन्तिम उपवास हो, लेकिन मेरे अन्तरसे यह आवाज आ रही है कि तुझे अभी ऐसी अनेक तपश्चर्याओंसे होकर गुजरना होगा; और कौन कह सकता है कि आगे आनेवाले उपवास इससे अधिक कष्टप्रद न होंगे? मैं सर्वथा गलतीपर भी हो सकता हूँ; तब संसार मेरी मृत्युके बाद मेरी समाधि-शिलापर यह लिख सकेगा "मूर्ख, तूने अपनी करनीका उचित फल पाया ! " लेकिन, फिलहाल, यह सचमुच मेरी गलती हो, तो भी यही मेरा जीवन है । पूर्ण शुद्ध न होनेके कारण यदि मेरी अन्तरात्मा गुमराह हो तो भी दूसरे लोगोंकी सलाहपर - कितने ही मित्रभावसे दिये जानेपर भी सलाह गलत हो सकती है - चलनेकी अपेक्षा अपनी अन्तरात्माकी आवाज सुनना ही क्या अधिक अच्छा नहीं है? यदि मेरे कोई गुरु होते, मैं गुरुकी खोजमे भी हूँ, तो मैं अपना शरीर और आत्मा सब-कुछ उन्हींके चरणों में रखकर निश्चिन्त हो जाता। लेकिन अश्रद्धा के इस जमानेमें सच्चे गुरुका मिलना कठिन है। सच्चे गुरुके अभाव में किसीको भी गुरु मान लेना तो और भी बुरा होगा; इससे प्रायः नुकसान ही होता है। इसलिए मुझे लोगोंको यह चेतावनी दे देनी चाहिए कि कोई व्यक्ति कच्चे-पक्के व्यक्तिको अपना गुरु न बनाये। उस शख्सको, जो यह नहीं जानता है कि वह कुछ भी नहीं जानता, आत्मसमर्पण कर देनेकी अपेक्षा अन्धेरेमें भटकते रहना और लाखों गलतियाँ करके भो सत्यकी राहपर चलना कहीं अच्छा है। क्या कोई गलेसे पत्थर बाँधकर तैरना सीख सकता है ।

फिर गलत तौरपर किये गये किसी उपवाससे नुकसान भी किसका होगा ? अवश्य मुझ अकेलेका ही। लेकिन लोग कहते हैं कि मुझपर तो वर्चस्व जनताका ही है। ऐसा हो तो भी जनताको मुझे मेरे तमाम दोषोंके साथ ही ग्रहण करना चाहिए। मैं सत्यका शोधक हूँ। मैं अपने प्रयोगोंको सर्वोत्तम तैयारीके साथ किये गये हिमालय आरोहण - अभियानसे भी कहीं अधिक महत्त्व देता हूँ। और परिणाम ? यदि मेरी शोध वैज्ञानिक है तो प्रयत्न और परिणाम इन दोनोंकी कोई तुलना करना निरर्थक ही है। इसलिए, मुझे अपने ही मार्गपर चलने दीजिए। जिस दिन मैं अपने सूक्ष्म अन्तर्नादको सुनना बन्द कर दूंगा, उसी दिन मेरी उपयोगिता समाप्त हो जायेगी ।

इस उपवासका जनताके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। मैं सत्याग्रहाश्रम नामकी एक बड़ी संस्था चला रहा हूँ। जिन मित्रोंको मुझपर विश्वास है उन्होंने मुझे केवल