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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

इस इतिहासकी बातें सोचता हूँ तो देखता हूँ कि आजकी स्थितिमें एक भी बात ऐसी नहीं है जिसका अनुभव मुझे छोटे पैमानेपर दक्षिण आफ्रिकामें न हुआ हो। वहाँ आरम्भमें ऐसा ही उत्साह, ऐसी ही एकता और ऐसी ही दृढ़ता श्री; मध्यमें ऐसी ही निराशा, ऐसी ही उपेक्षा और ऐसे ही आपसी झगड़े और द्वेष आदि थे, फिर भी मुट्ठी-भर लोगोंमें अविचल श्रद्धा, दृढ़ता, त्याग-भावना और सहिष्णुता थी और उसी प्रकार अनेक प्रकारकी अपेक्षित और अनपेक्षित कठिनाइयाँ थीं। हिन्दुस्तानकी लड़ाईका आखरी दौर अभी बाकी है। मुझे आशा है कि आखिरी दौरमें जैसी स्थितिका अनुभव मुझे दक्षिण आफ्रिकामें हुआ था वैसा ही यहाँ भी होगा। आगे दक्षिण आफ्रिकाकी लड़ाईका आखिरी दौर पाठकके सामने आयेगा और वे देखेंगे कि उसमें किस तरह बिना मांगे सहायता मिली, लोगोंमें किस तरह सहज ही उत्साह उमड़ उठा और अन्तमें किस तरह हिन्दुस्तानियोंकी पूरी-पूरी जीत हुई।

जैसा दक्षिण आफ्रिकामें हुआ वैसा ही यहाँ भी होगा ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है, क्योंकि तपश्चर्या में, सत्यमें और अहिंसामें मेरी अटल श्रद्धा है। इस बातमें मेरा अक्षरशः विश्वास है कि सत्यसेवीके सम्मुख समस्त संसारकी ऋद्धियाँ आ खड़ी होती हैं और उसको ईश्वरका साक्षात्कार होता है। अहिंसाके सान्निध्यमें वैरभाव टिका नहीं रह सकता, इस बातको में भी अक्षरशः सत्य मानता हूँ। कष्ट सहन करनेवालोंके लिए कुछ भी अशक्य नहीं हो सकता, मैं इस सूत्रका उपासक हूँ। कुछ लोक-सेवकोंमें मैं इन तीनों बातोंका संयोग देखता हूँ। ऐसे लोगोंकी साधना निष्फल जाती ही नहीं है, यह मेरा निरपवाद अनुभव है।

किन्तु कोई कह सकता है कि दक्षिण आफ्रिकाकी पूरी-पूरी जीतका इतना ही अर्थ तो निकला कि हिन्दुस्तानी जिस हालतमें थे उस हालतमें वहाँ बने रहे। कहना पडेगा कि जो ऐसा कहता है, उसे कुछ मालम नहीं है। यदि दक्षिण आफ्रिकाकी लड़ाई न लड़ी गई होती तो आज दक्षिण आफ्रिकासे ही नहीं, बल्कि अंग्रेजोंके सभी उपनिवेशोंसे हिन्दुस्तानियोंके पैर उखड़ गये होते और किसीके कानपर जूतक न रेंगती। किन्तु यह उत्तर पर्याप्त नहीं है; सन्तोषजनक भी नहीं है। यह भी कहा जा सकता है कि यदि सत्याग्रह न किया जाता और समझाने-बुझानेसे जितना काम लिया जा सकता उतना लेकर बैठ जाते तो जैसी स्थिति आज है वैसी न होती। यद्यपि ऐसा कहना निरर्थक है, फिर भी जहाँ केवल तर्क उठाने और अटकल लगानेकी बात हो वहाँ किसका तर्क अथवा अनुमान सर्वश्रेष्ठ है यह कौन कह सकता है ? अनुमान लगानेका अधिकार तो सभीको है। किन्तु यह तो अकाट्य बात है कि जो वस्तु जिस साधनसे प्राप्त की जाती है उसो साधनसे उसे कायम रखा जा सकता है।

"काबे अर्जुन लूटियो, वही धनुष वही बाण।"

अर्जुनने युद्धमें शिवको हराया था और कौरवोंके गर्वको नष्ट किया था, किन्तु सारथीके रूपमें कृष्णके न रहनेपर वही अर्जुन गाण्डीव धनुषके रहते हुए भी लुटेरोंके दलसे पार न पा सका। यही बात दक्षिण आफ्रिकाके हिन्दुस्तानियोंपर भी लागू होती है। अभी तो वे लड़ ही रहे हैं। किन्तु जिस सत्याग्रहसे उन्होंने लड़ाई जीती थी