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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी हिस्सा बँटाना पड़ता है। इसलिए जहाँ मैं आश्रमके बारेमें यह बात गर्वके साथ कहता हूँ कि उसमें कुछ बहुत ऊँचे चरित्रके लोग रहते हैं वहाँ मेरा यह भी कर्त्तव्य है कि मैं अपने आश्रममें सबके द्वारा पसन्द किये गये इस छोटेसे राजाके रूपमें लड़कों के पापोंका प्रायश्चित्त भी करूँ । यदि मुझे भारतमें छोटे और गरीब लोगोंके दुःखोंको अपना दुःख समझना है और यदि मुझमें शक्ति है तो मुझे उन बच्चोंकी भूलोंको अपनी भूल समझना चाहिए, जिन बच्चोंकी देखरेखका भार मुझपर है। यह काम पूर्ण नम्रताके साथ करनेसे ही मैं ईश्वरका -- सत्यका साक्षात्कार कर सकूँगा ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ३-१२-१९२५

२२. अस्पृश्यताका अभिशाप

[१ दिसम्बर, १९२५ से पूर्व ]

१ दिसम्बर, १९२५ के 'सर्वे' (अमेरिकी ) में महात्मा गांधी लिखते हैं:

भारत में अस्पृश्यता निवारण आन्दोलन हिन्दूधर्मकी शुद्धिका आन्दोलन है, हिन्दू धर्मके लगभग २४ करोड़ लोग अनुयायी हैं। अनुमान लगाया गया है कि इनमें ४ करोड़से ऊपर लोग अस्पृश्य माने जाते हैं। यह अस्पृश्यता दक्षिण भारतमें अपने उग्रतम रूपमें है, यहाँतक कि वहाँ उनका समीप पहुँचना या दिख जाना भी वर्जित है। अस्पृश्यताकी प्रथामें तथाकथित ऊँचे वर्गीके लोगोंका अस्पृश्य कहलानेवाले लोगोंके स्पर्शसे बचना ही आता है। अनुपगम्य वे लोग हैं जिनके एक निश्चित हदकी दूरीसे अधिक पास आ जानेपर ऊँचे वर्गके लोग अपवित्र हो जाते हैं। जिनके देखने-मात्रसे वे अपवित्र होते हैं ऐसे लोग अदर्शनीय हैं।

हिन्दू समाजकी ये बहिष्कृत जातियाँ जिन जगहोंमें सीमित रहती हैं, उन्हें 'गेटो" कहना ठीक होगा। भली-भाँति सुसम्बद्ध किसी भी समाजमें जिन सामान्य सुविधाओंको हर प्राणीका अधिकार समझा जाता है, जैसे कि डाक्टरी सहायता, नाई, धोबी आदिकी सुविधा, वे भी इन्हें नहीं दी जातीं। बहुत बड़ी संख्या में प्राणियों के इस तरह उत्पीड़नसे स्वयं उत्पीड़कोंपर एक अमिट कलंक लग गया है और अस्पृश्यता- का नासूर हिन्दू धर्मकी शक्तिको क्षीण करता जा रहा है; यहाँतक कि इसने किसी समयकी एक महान् संस्थाको विकृत कर दिया है। मेरा अभिप्राय है वर्णाश्रम व्यव- स्थासे, जो समाजकी गलती या कमजोरियोंके कारण जाति व्यवस्थामें परिणत हो गई है। वर्णाश्रमका प्रयोजन तो था श्रम और पेशोंका वैज्ञानिक ढंगसे बँटवारा। किन्तु अब यह बँटवारा सहभोज और विवाह सम्बन्धोंको संचालित करनेकी एक विस्तृत प्रणाली-भर बनकर रह गया है। संसारके एक श्रेष्ठ धर्मको खानपान और विवाह- सम्बन्धी हास्यास्पद नियमोंकी संहिता मात्र बना दिया है।

१. यहूदी टोला।