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३०. पत्र : मीरा बहनको

४ दिसम्बर, १९२५

प्रिय मीरा, '

तुम्हारी स्नेहपूर्ण भेंट मिली। शंकरलाल बैंकरने मुझे इसका अन्दाज दे रखा था। उन्होंने मुझसे यह कहा था कि तुम मुझे चकित करने जा रही हो। मैं समझ गया था। हिन्दी और उर्दू दोनोंकी लिखावट अच्छी है; मेरी लिखावटसे तो निश्चय हो बेहतर। यही होना भी चाहिए। जिस विरासतका अपने बारेमें तुमने दावा किया है, उसे लापरवाहीसे खर्च करके जाया मत कर देना, बल्कि हजार गुना बढ़ाना ।

तुम्हारी याद बरावर बनी रहती । तीन दिन न मिलनेकी यह बात अनुशासन- की दृष्टिसे अच्छी रही। तुमने उसका बहुत ठीक उपयोग किया है।

देवदासने कहा है कि तुम्हारी आवाज अब फिर पहले जैसी हो गई है।

तुम मुझे कल अपने गरम कपड़ोंके बारेमें बताना ।

ईश्वर तुम्हारा मंगल करे और अकल्याणसे बचाये ।

सस्नेह,

बापू


अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ५१८३) से ।

सौजन्य : मीरा बहन

३१. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको


शुक्रवार [४ दिसम्बर, १९२५]

भाई श्री ५ घनश्यामदासजी,


आपके पत्रका उत्तर मैंने जमनालालजीके मार्फत भेजा था वह मीला होगा । आपका लंबा पत्र जब मुझे मीला था तब मैंने उसका सविस्तारसे उत्तर भेज दीया था और उसकी निजकी रजिस्ट्री भी है। वह उत्तर सोलनमें भेजा गया था। कैसे गुम हो गया मैं नहि समझ सकता हूं।

१. गांधीजीने मिस स्लेडके साबरमती आश्रम में पहुँचनेके थोड़े दिन बाद उनका यह भारतीय नाम रख दिया था।

२. यही पत्र गांधीजीकी छत्रछायामें, ७-८-१९२५ के अन्तर्गत प्रकाशित होनेके कारण खण्ड २८ (देखिए पृष्ठ ४७) में भी सम्मलित हो चुका है। वैसे इसकी सही तिथि ४ दिसम्बर, १९२५ हो है।

३. उपवासके उल्लेखसे।