पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/३०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८३
सन्देश : स्नेह सम्मेलन, अहमदाबादको

साथ असहयोग भो करना चाहिए। यदि मातृभूमिके प्रति निष्ठावान् रहना प्रशंसनीय है तो उसके प्रति अप्रीति रखना अवश्य ही घृणित है। यदि हमें स्वतन्त्रताके साथ सहयोग करना है तो हमें गुलामीके साथ असहयोग करना ही होगा। इसलिए राष्ट्रीय शालाएँ चाहे एक हो या अनेक, चाहे उनमें पर्याप्त विद्यार्थी हों या एक-दो ही, भविष्यके इतिहासकारोंको स्वतन्त्रता प्राप्त करनेके साधनोंमें राष्ट्रीय शालाओंको महत्त्वका स्थान देना ही होगा। हमारा साहस नया है। आलोचकोंको उसमें दोष दिखानेके लिए बहुत कुछ मिलेगा। इन शालाओंके कुछ दोष तो हम खुद भी देख पाते हैं। हमें उनके निवारणके प्रयत्न करते रहने चाहिए। मैं जानता हूँ कि हमारे प्रशासनमें बहुत-सी बातोंकी कमी है। हमारे व्यवस्थापक और आचार्यगण अपूर्ण हैं | हम लोग इन बातोंपर बराबर ध्यान दे रहे हैं और दोषोंको दूर करने में कोई बात उठा न रखेंगे।

विद्यार्थियो ! धीरज रखो और विश्वास रखो कि तुम लोग स्वराज्यकी सेनाके सिपाही हो। जो ऐसे सिपाहीके योग्य न हो ऐसा कुछ भी न करो, न कहो और न विचारो। ईश्वर तुम्हारा कल्याण करे।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १०-१२-१९२५


३३. सन्देश : स्नेह सम्मेलन, अहमदाबादको'

५ दिसम्बर, १९२६

स्नेह सम्मेलन विद्यार्थी जीवनका एक अंग है। उसके सदुपयोग बहुत हैं। किन्तु उसके कुछ दुरुपयोग भी मेरे देखने में आये हैं। फिर भी मैं उसका एक उपयोग यहाँ बताना चाहता हूँ । विद्यार्थियोंका पारस्परिक सम्बन्धोंको विकसित करना जितना वांछनीय है, उतना ही भारतके गरीबोंके प्रति अपना स्नेह-सम्बन्ध बढ़ाना भी आवश्यक है। सूतका धागा ही यह स्नेह-बन्धन है, मैं यह बात विद्यार्थियोंको कैसे समझाऊँ? इस धागे कुछ-न-कुछ अलौकिक शक्ति होगी तभी तो ईश्वरको सूत्रधार" का विशेषण दिया गया है। यदि हम इस महान् "सूत्रधार" की सेवाके लिए छोटे-मोटे सूत्रधार बन जायें तो कितना अच्छा हो ।

[ गुजराती से ]
साबरमती, खण्ड ४, अंक ४ (शिशिर १९१२) ।

१. गुजरात महाविद्यालय के पांचवें स्नेह सम्मेलनके अवसरपर यह सन्देश मृदुला बहनने गांधीजीको उपस्थितिमें उनके अस्वस्थ होनेके कारण पढ़ा था । Gandhi Heritage Portal