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३४. पत्र : वसुमती पण्डितको

रविवार [६ दिसम्बर, १९२५]

चि० वसुमती,

यह पत्र में घोलकासे लिख रहा हूँ। इससे तुम्हें मेरी तबीयतका कुछ अन्दाज हो जायेगा । मेरा वजन ९ पौंड घट गया था, उसमें से ५ पौंड पिछले पांच दिनोंमें वापस मिल गया है। अब थोड़ा चलता भी हूँ। इसलिए तुम मेरी चिन्ता बिलकुल न करना । मैं कल सबेरे यहाँसे अहमदाबाद जाऊँगा और वहाँसे उसी दिन बम्बई । वहाँसे ९ तारीखको वर्धा जाना है। वर्धामें ११ दिन रहूँगा और उसके बाद कानपुर जाऊँगा । आशा है तुम बहन-भाइयोंकी तबीयत अच्छी होगी।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६१७) से ।

सौजन्य : वसुमती पण्डित

३५. सन्देश : धोलकाकी सार्वजनिक सभाको

६ दिसम्बर, १९२५

ईश्वरका बहुत धन्यवाद है कि शारीरिक रूपसे असमर्थ होनेके बावजूद उसने मुझे आप लोगोंसे आकर मिलनेके अपने वचनको निभानेका बल दिया। मैंने सुना है कि यहाँ बहुतसे ताल्लुकेदार हैं। मैं आशा करता हूँ कि वे अपने आसामियोंसे अच्छे मीठे सम्बन्ध स्थापित करेंगे और उन्हें कायम रखेंगे और वे सम्बन्ध आज जितने सौहार्दपूर्ण हैं आगे उससे भी अधिक अच्छे बनेंगे। मैं किस तरह आपको विश्वास दिलाऊँ कि कातना और सिर्फ खद्दरका प्रयोग करना ही स्वराज्य प्राप्तिका सबसे छोटा रास्ता है। आपके एक गज खद्दरके प्रयोगका अर्थ है आपके गरीब देशभाइयोंकी जेबमें चार-पाँच आना पहुँचना। कितना अच्छा होता कि मैं आपको यह भी समझा सकता कि किसी मानवको 'अस्पृश्य' मानना अपनी और अपने धर्मकी बेइज्जती करना है। हममें जो बुरी वासनाएँ हैं, वे ही अस्पृश्य हैं; हमें उनसे छुटकारा पाना चाहिए। अपने आपको शुद्ध बनाइये और यदि आप समझते हैं कि कातकर अपनी आय बढ़ानेको जरूरत नहीं है तो त्यागके रूपमें प्रतिदिन आधा घंटा कातिए । ईश्वरके नामपर अपने देशके गरीबोंकी खातिर कातिए ।

१. ६ दिसम्बर १९२५ को गांधीजी घोलका में थे।

२. महादेव देसाईके विवरणसे उद्धृत गांधीजी इस सभामें उपस्थित थे।