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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि उसे उन्होंने छोड़ दिया होगा तो वे आखिरकार बाजी हार जायेंगे। सत्याग्रह उनका सारथी था और आज भी यही सारथी उनका त्राण कर सकता है।

मोहनदास करमचन्द गांधी
 

नवजीवन, ५-७-१९२५

प्राक्कथन'

श्री वालजी देसाई द्वारा किये गये इस अनुवादका संशोधन मैंने स्वयं किया है। मैं पाठकोंको विश्वास दिलाता हूँ कि अनुवादक मूल गुजरातीके भावोंको पूरी ईमानदारी के साथ उतार पानेमें समर्थ हुआ है। मूल पुस्तक स्मृतिके आधारपर लिखी गई थी। उसके कुछ अध्याय यरवदा जेलमें और कुछ जेलसे अवधिके पहले छूटनेपर लिखे गये थे। अनुवादक श्री वालजी इस बातको जानते थे इसलिए उन्होंने 'इंडियन ओपिनियन'की फाइलें अच्छी तरह पढ़ डालीं और उन्हें जहाँ-कहीं कोई चूक दिखाई दी, उसे सुधारनेमें संकोच नहीं किया। मुझे प्रसन्नता है कि कहीं कोई बड़ी भूल नहीं रहने पाई है पाठकोंको भी इससे प्रसन्नता होगी। पाठकोंसे में यह भी कह दूं कि जो पाठक आजकल 'सत्यना प्रयोगो' की साप्ताहिक लेखमाला पढ़ रहे हैं यदि वे सत्यकी शोधकी सविस्तार जानकारी चाहते है तो उन्हें सत्याग्रह सम्बन्धी इन अध्यायोंको भी अवश्य पढ़ना चाहिए

मो० क० गांधी
 

साबरमती

२६ अप्रैल, १९२८

अध्याय १

भूगोल

आफ्रिका संसारके बड़ेसे-बड़े भूखण्ड में से है। हिन्दुस्तान भी एक बड़ा भूखण्ड है, फिर भी क्षेत्रफल की दृष्टिसे देखें तो आफ्रिकामें हिन्दुस्तान-जैसे चार या पाँच देश समा जा सकते हैं। दक्षिण आफ्रिका इस भूखण्डका ठेठ दक्षिणी भाग है। हिन्दुस्तानकी तरह आफ्रिका भी प्रायःद्वीप है और उसका बहुत-सा भाग समुद्रसे घिरा हुआ है। आफ्रिकाके सम्बन्धम आम तौरपर लोगोंको यह धारणा है कि वहाँ गरमी बड़ी जबदस्त पड़ती है और एक तरहसे यह बात सच भी है। भूमध्य रेखा आफ्रिकाके बीचोंबीचसे गुजरती है। भूमध्य रेखाके आसपास कितनी गरमी पड़ती है, हिन्दुस्तानमें रहनेवाले लोग इसकी कल्पना नहीं कर सकते। हम हिन्दुस्तानके धुर दक्षिणमें जितनी गरमी अनुभव करते हैं उससे भूमध्य रेखाके पासकी गरमीकी थोड़ी-बहुत कल्पना की जा सकती है। किन्तु दक्षिण आफ्रिकामें वैसी तेज गरमी नहीं पड़ती; क्योंकि वह।

१. पुस्तकके अंग्रेजी अनुवादकी भूमिकासे।