में अपना सन्देश दे चुका हूँ। मैं आपको अन्य कोई नया और ताजा सन्देश नहीं दे सकता । उसी सन्देशपर आप अमल करें और मुझे उसके परिणाम सूचित करें•••
३६. पत्र : मणिबहन पटेलको
सोमवार [७ दिसम्बर, १९२५ ]
तुम्हारे पत्र मिलते रहते हैं। तुम्हारा सारा कार्यक्रम मालूम हो गया है। तुम्हें वहां सेवासदन [पूना ] में सव-कुछ नया लगेगा, यह तो मैं जानता ही था। फिर भी वहाँका अनुशासन, कार्यपद्धति, उत्साहमय वातावरण और प्रामाणिकता वगैरा आकर्षित करनेवाली बातें हैं । फिर, इसके बराबर जीवन्त संस्था शायद ही अन्य कोई हो । हमें उसकी जो पद्धति आदि अच्छी लगे वह अपने कार्यक्रममें दाखिल करनी है। हमें गुणग्राही बनना चाहिए। जितना पसन्द हो उतना ले लें। हमसे भिन्न विचार रखनेवाले समाजमें भी सहिष्णुतापूर्वक रहना तो हमें आना ही चाहिए न ?
आशा है, तुम्हारी तबीयत अच्छी रहती होगी । तुम मेरी चिन्ता न करना । मुझमें शक्ति आती जा रही है। आज बम्बई जा रहा हूँ। बम्बई एक दिन रहकर वहाँसे वर्धा जाऊँगा। वर्धा नियमित रूपसे पत्र देना । वहाँके अपने अनुभवोंकी डायरी रखो तो अच्छा हो ।
डाह्याभाई अभी तो विट्ठलभाईके आग्रहसे उनके पास जायेगा । वह वहाँ दो चार दिनमें चला जायेगा। फिर उनके साथ कांग्रेसमें जायेगा ।
जबतक अच्छा लगे तबतक तुम्हारा तो वहीं रहना ठीक है। मनमें जो विचार उठें सब मुझे लिखती रहना ।
बापू के आशीर्वाद
[ गुजरातीसे ]
बापुना पत्रो - ४ : मणिबहेन पटेलने
१. साधन-सूत्र के अनुसार