पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/३१२

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{{c|३७. पत्र : वसुमती पण्डितको

[७ दिसम्बर, १९२५ ]

चि० वसुमती,

घोलकासे आनेपर तुम्हारा पत्र मिला । गलेका लटकन डाह्यालालकी मार्फत बेचा जा सकता है। लेकिन रेवाशंकरभाई सीधा डाह्यालालसे सम्पर्क करें और डाह्यालाल उनकी सलाहसे उसे बेचकर पैसा उनके पास जमा करवा दे। इस समय मुझे जल्दी है; इसलिए अन्य कुछ नहीं लिखता । रामदासको होशियार हो जाना चाहिए।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च : ]

शान्तिसे कहना कि मुझे उसका पत्र पाकर बहुत खुशी हुई है। और भी लिखे ।

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०१) से ।

सौजन्य : वसुमती पण्डित

३८. भाषण : गुजराती राष्ट्रीय शाला, बम्बई में

८ दिसम्बर, १९२५

ईश्वरने मुझे इस अवसरपर उपस्थित होनेकी जो शक्ति प्रदान की है इसके लिए मैं उसका अनुग्रह मानता हूँ । जो थोड़ी-सी राष्ट्रीय शालाएँ बच रही हैं यह शाला उनमें से एक है। इसमें शिक्षक त्यागवृत्तिसे काम कर रहे हैं, इसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ। मैंने अभी-अभी सुना है कि शिक्षकोंने अपने वेतन स्वेच्छासे पन्द्रह प्रतिशत कम कर दिये हैं। प्रधानाध्यापक तो वेतन लेते ही नहीं, यह सब सन्तोषप्रद और अति उत्तम है। मुझे उम्मीद है कि लोग इस शालाके कार्यमें दिलचस्पी लेंगे और उसे प्रोत्साहन देंगे।

बालको यह बात समझ लो कि तुम इस स्कूलमें देशसेवाका शिक्षण लेने आते हो; इससे तुम जो कुछ यहाँ सीखोगे, उसका अधिकांश भाग तुम्हें देशको अर्पण करना है। चरखा शिक्षाका सार है। तुम सूत कातनेवाले बच्चे देशके अर्थ, देशके गरीबों के अर्थ सूत कातते हो और इस तरह बचपनसे ही परमार्थका पदार्थपाठ सीखते हो । चरखेको तुम कभी न छोड़ना ।


१. गांधीजी घोलकासे ७ दिसम्बर, १९२५ को अहमदाबाद लौटे थे।