पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/३१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

४०. दक्षिण आफ्रिकाका शिष्टमण्डल

दक्षिण आफ्रिकासे जो शिष्टमण्डल भारत आ रहा है वह १२ ता० को यहाँ पहुँचनेवाला है; उसके सदस्योंकी नामावलि इस प्रकार है: डा० अब्दुर्रहमान, श्री सोराबजी रुस्तमजी, श्री बी० एस० पाथेर, सेठ जी० मिर्जा, सेठ अमोद भायात, श्री गॉडफे, सेठ हाजी इस्माइल, श्री भवानी दयाल ।

यह शिष्टमण्डल दक्षिण आफ्रिकाके प्रख्यात व्यक्तियोंका है और इसमें सभी दलों, सभी समाजों और सभी वर्गोंके प्रतिनिधि मौजूद हैं। वे दक्षिण आफ्रिका में रहनेवाले प्रवासी भारतवासियोंके जुदा-जुदा वर्गों और हितोंकी तरफसे बोल सकते हैं। इसके अध्यक्ष डा० अब्दुर्रहमानका जन्म दक्षिण आफ्रिकामें ही हुआ था । मण्डलके कुछ अन्य सदस्य भी वहां पैदा हुए थे । डाक्टर महोदय मलाया-डाक्टरके नामसे प्रसिद्ध हैं, लेकिन उनमें हिन्दुस्तानी खून है। मलायी लोग दक्षिण आफ्रिकी समाजके एक अंग हैं, वे सभी मुसलमान हैं । मलायी स्त्रियाँ बिना संकोचके हिन्दुस्तानी मुसलमानोंके साथ शादी करती हैं। ये विवाह सम्बन्ध सुखी सिद्ध हुए हैं और उनकी सन्ततिमें से कुछ तो बड़ी उच्च शिक्षा पाये हुए लोग हैं। डा० अब्दुर्रहमान इसी विशिष्ट श्रेणीमें आते हैं। उन्होंने स्कॉटलैंडमें चिकित्साशास्त्रका अध्ययन किया था और वे केपटाउनमें सफलतापूर्वक अपना काम कर रहे हैं। केपकी पुरानी विधानसभाके वे सदस्य थे और वहाँकी नगरपालिकाके एक प्रमुख सदस्य भी रह चुके हैं। वहाँकी रंगभेद नीतिकी चपेटसे वे भी नहीं बच पाये ।

निस्सन्देह इस शिष्टमण्डलका यहाँ हार्दिक स्वागत होगा और उसकी बातें धैर्यसे सुनी जायेंगी। हर्षकी बात है कि प्रवासी भारतवासियोंका प्रश्न किसी एक दलका प्रश्न नहीं है। यह एक ऐसा प्रश्न है कि इसमें हिन्दुस्तानमें बसे हुए अंग्रेजोंकी भी हिन्दुस्तानियों के प्रति सहानुभूति है। उनका पक्ष है भी बड़ा ही न्यायपूर्ण । इसलिए अब प्रश्न केवल यही है कि भारतवासियोंमें न्याय प्राप्त करनेकी शक्ति है या नहीं। यदि भारत सरकार दृढ़ रहे और उसे साम्राज्यीय सरकारकी मदद मिले तो केन्द्रकी तरफसे डाले गये किसी दबावके सामने संघ सरकारको झुकना ही पड़ेगा। लेकिन इससे दक्षिण आफ्रिका द्वारा साम्राज्यसे अलग हो जानेका भय है। जो जरासे धक्केसे ही टूटकर अलग हो जा सकते हैं, ऐसे साम्राज्यके ऐसे अनिच्छुक हिस्सेदारोंको एक सूत्रमें बांध रखनेका मूल्य तो केवल साम्राज्यवादी ही समझ सकते हैं। परस्पर विरोधी शक्तियोंको एकत्र रखनेकी अत्यधिक चिन्ताके कारण ही तो साम्राज्यकी राजनीतिका इतना पतन हो गया है कि केवल आफ्रिकावासियों और एशियावासियोंको चूसना ही उसका ध्येय बन गया है। जहाँतक सम्भव होता है अपनी इस लूटमें साम्राज्यकी नीति अन्य यूरोपीय राज्यों को शामिल नहीं होने देती। प्रवासी भारतवासियोंके प्रश्नके सम्बन्ध में ग्रेट ब्रिटेन जो नीति बरतेगा वही उसकी और उसके इरादोंकी खरी कसौटी होगी ।