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राष्ट्रीय शिक्षा


क्या संघ सरकारकी तरफसे दबाव आनेपर भी वह न्याय करनेका साहस करेगी ? दक्षिण आफ्रिकाका शिष्टमण्डल उसी, प्रश्नका उत्तर पानेके लिए यहाँ आ रहा है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १०-१२-१९२५

४१. राष्ट्रीय शिक्षा

गुजरात विद्यापीठका वार्षिक दीक्षान्त और पारितोषिक वितरण समारोह सम्पन्न हो गया। उस समय साल-भरका लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया था । उसमें बिना किसी प्रकारके दुराव-छिपावके यह तथ्य रूपमें प्रकट किया गया कि विद्यापीठकी व्यवस्थाके अन्तर्गत काम करनेवाले उससे सम्बद्ध विद्यामन्दिरोंमें पढ़नेवाले लड़कों और लड़कियोंकी संख्या घट गई है। गुजरातकी राष्ट्रीय शालाओंकी व्यवस्था बहुत अच्छी भले न हो, पर उनकी आर्थिक स्थिति तो कदाचित् बहुत अच्छी ही है। इन शालाओंके बारेमें कमसे-कम इतना अवश्य कहा जा सकता है कि उनमें विद्यार्थियोंकी संख्याके ह्रासका कारण धनका अभाव नहीं है।

इसमें सन्देह नहीं कि इस समय राष्ट्रीय शालाएँ लोकप्रिय नहीं हैं। उनके पास न शानदार बड़ी-बड़ी इमारतें हैं और न बेशकीमती कुर्सी-मेजें आदि अन्य साधन ही । वे बड़ी-बड़ी तनख्वाह पानेवाले प्राध्यापक या शिक्षक रखनेकी शान भी नहीं दिखा सकती हैं; और वे यह बात भी गर्वके साथ नहीं कह सकतीं कि उनकी कार्यप्राणाली या परम्परा जैसी शुरूमें थी लगातार वैसी ही बनी रही है। वे विद्यार्थियोंके दिलोंमें उज्ज्वल भविष्यकी आशाओंका भरोसा ही पैदा नहीं कर सकतीं।

वे जिस बातका दावा करती हैं, ज्यादातर लोग उससे किसी प्रकार आकृष्ट नहीं होते। उनका दावा है कि उनके पास आत्मत्यागी देशभक्त शिक्षक हैं। वे हमेशा गरीबी और तंगीसे कालक्षेप कर रहे हैं और यह इसलिए कि राष्ट्रके युवक उनसे शिक्षा प्राप्त करके लाभान्वित हों। इन शालाओं में हाथकताई और उसके साथ सम्बन्ध रखनेवाली सब बातें सिखाई जाती हैं। वे सेवा करनेकी कला सिखाती हैं। वे देशी भाषाओंके माध्यमसे शिक्षा देनेका प्रयत्न करती हैं। वे राष्ट्रीय खेल-कूदका पुनरुद्धार करनेका प्रयास करती हैं और राष्ट्रीय संगीत सिखाती हैं। वे लड़कोंको गाँवों में जाकर सेवा करनेके लिए तैयार करती हैं। और इस उद्येश्यसे हिन्दुस्तानके गरीबोंके प्रति उनमें भ्रातृभाव उत्पन्न करती हैं। लेकिन ये सारे आकर्षण काफी नहीं हैं; संख्या इसीलिए तो घट रही है ।

इन शालाओंके लोकप्रिय न होनेका कारण केवल उनका कथित आकर्षणहीन होना ही नहीं है । जोश, नशे और उम्मीदोंसे भरे उस १९२१ के सालमें बहुत कुछ कहा गया था। अब जोश-खरोश उतर गया है और उसका स्वभाविक परिणाम उत्साह-हीनताके रूपमें दिखाई दे रहा है। लड़कोंने अब नफा-नुकसान सोचना शुरू

१. देखिए “ भाषण : गुजरात विद्यापीठके दीक्षान्त समारोहमें ", १०-१२-१९२५ ।

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