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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसके साथ बलवन्तरायका पत्र भेज रहा हूँ। देवचन्द भाई और तुम इसपर विचार कर लेना तथा उचित व्यवस्था करना । जहाँ-जहाँ चिह्न लगा हुआ है उस मामलेके सम्बन्धमें मैंने उत्तर दे दिया है ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २८२९) से ।

सोजन्य : शारदाबहन शाह

४५. पत्र : भगवानजी अ० मेहताको

[१० दिसम्बर, १९२५ ]


भाईश्री भगवानजी,

तुमने पत्र लिखा, यह तो अच्छा किया। लेकिन हमेशा की तरह तुम्हारे पत्रोंमें धैर्य और विचारका अभाव तो अवश्य ही है। तुम क्या जानो कि अब मैं विवाह करवानेवाला अमलदार ही बन गया हूँ। क्या तुम्हें मालूम है कि आश्रममें कितने विवाह हुए? मैं ब्रह्मचर्यका पालन करानेका प्रयत्न अवश्य करता हूँ; लेकिन इस बारेमें किसीपर जोर तो कैसे डाला जा सकता है ? आश्रममें जो दोष नजर आये वे होते तो सभी लड़के-लड़कियों में हैं; लेकिन इससे तुम यह तो नहीं चाहते कि मैं १०-१२ वर्षके बच्चोंको विवाह करने दूं? यह सब कहकर मैं तुम्हें आलोचना करने से रोकना नहीं चाहता, बल्कि यह मैं तुम्हारी विचारशक्तिको तीव्र करने तथा तुम्हें तथ्य जाने बिना टीका करने से रोकनेके लिए मित्रभावसे लिखता हूँ ।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

भाई भगवानजी अनूपचन्द वकील
राजकोट
काठियावाड़

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३०३२) से ।

सोजन्य : नारणदास गांधी


१. ढाकको मुहरसे।