४८. पत्र: एस्थर मैननको
वर्धा
११, दिसम्बर १९२५
बहुत दिनोंसे तुम्हारे पत्रको प्रतीक्षा कर रहा था। इसलिए तुम्हारा पत्र पाकर प्रसन्नता हुई। मुझे खुशी है कि तुम अब बेहतर हो ।
मेरे उपवासके विषयमें तुमने सब-कुछ सुन लिया होगा? उससे स्वास्थ्यको कोई नुकसान नहीं हुआ । मेरा जो भी वजन दस दिनमें कम हुआ था, लगभग फिर वापस आ गया है, और अब मैं वर्धा ज० के घर आराम ले रहा हूँ ।
मिस स्लेड, जिसे हम मीरा कहते हैं, मेरे साथ है और कांग्रेसमें आ रही है। तुम्हारा पत्र पाकर उसे खुशी हुई। यदि तुम्हें अबतक लिख नहीं चुकी है, तो मैं समझता हूँ कि अब लिखेगी।
में नववर्षके दिनतक आश्रम लौटनेकी उम्मीद करता हूँ ।
सेवाकार्यके सम्बन्धमें एम० के विचार ऊँचे हैं। ईश्वर करे वे सब कार्यरूपमें परिणत हों।
क्या स्कूल तुम्हारे यहाँ हैं ? सबको स्नेह, प्रगति कर रहा है? कितने बच्चे तुम्हारा पाठ्यक्रम क्या है ?
तुम्हारा,
बापू