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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ठीक ठीक परिणामोंको जाननेके लिए मैं पत्रप्रेषकसे कहना चाहता हूँ कि डा० अन्सारी और डा० अब्दुर्रहमानसे पूछताछ करें। उन्होंने गत वर्ष मेरे उपवासको सम्पूर्ण अवधिमें मेरी पूरी सार-संभाल रखी थी। उन्होंने बहुत परिश्रमसे काम किया था। वे हर समय मेरे पास रहते थे और उन्होंने दिलोजानसे मेरी सेवा-सुश्रूषा की थी ।

सबसे पहले तो मैं अपने दूसरे अधिक लम्बे उपवासकी समाप्तिपर होनेवाले कष्टोंका उल्लेख कर देना चाहता हूँ। मैंने १९१४ में दक्षिण आफ्रिकामें १४ दिनका उपवास किया था । उपवासको समाप्तिके बाद दूसरे ही दिनसे यह समझकर कि उससे मेरी कुछ भी हानि न होगी मैंने तेज रफ्तारसे पैदल घूमना शुरू कर दिया । दूसरे या तीसरे दिन लगभग तीन मील पैदल चला और टाँगोंकी मांसहीन पिडलियों में बहुत जोरका दर्द होने लगा। मैं उस दर्दका कारण न समझ सका; परन्तु ज्यों ही यह दर्द बन्द हुआ मैंने फिर घूमना शुरू कर दिया। मैं इसी हालत में दक्षिण आफ्रिकासे इंग्लैंड गया। वहाँ मुझे डा० जीवराज मेहताने देखा। उन्होंने मुझे सचेत करते हुए कहा कि यदि इसी प्रकार घूमना कायम रखा गया तो जिन्दगी-भरके लिए पंगु बन जानेका खतरा है। उन्होंने मुझे कमसे-कम १५ दिन लेटे रहने और आराम लेनेकी सलाह दी। लेकिन यह चेतावनी मुझे देरसे मिली और मेरी तन्दुरुस्ती बिगड़ गई। इसके पहले मेरा स्वास्थ्य बड़ा अच्छा था। मैं ४० मील बिना बहुत थकावट महसूस किये पैदल चल लिया करता था । २० मील चलना तो मेरे लिए कुछ बात ही नहीं थी। अपने अज्ञानके कारण मैंने जो बहुत ज्यादा परिश्रम किया उसके कारण मेरी नसोंमें सख्त दर्द होने लगा। और मैंने अपने अच्छे भले स्वास्थ्यको सदाके लिए बिगाड़ लिया। मेरे जीवनमें किसी भारी रोगसे ग्रसित होनेका यह पहला ही मौका था । इतना मूल्य चुकाकर मुझे जो अनुभव हुआ उससे मैंने यह सीखा कि उपवासके दिनों में शरीरको सम्पूर्ण आराम देना चाहिए और उपवासके बाद भी उपवासके दिनों के प्रमाण में कुछ दिन आराम लेना अत्यन्त आवश्यक है । यदि इतने सादेसे नियमका यथाविधि पालन किया जाये तो फिर उपवासजनित किसी दूसरे बुरे परिणामकी आशंका करनेकी कोई जरूरत नहीं रहती । निस्सन्देह मेरा यह विश्वास है कि सुव्यवस्थित ढंगसे किया गया उपवास शरीरको लाभ पहुँचाता है। उपवासके दिनोंमें शरीर अनेक अशुद्धियोंसे मुक्त हो जाता है । गत वर्ष उपवासके दिनोंमें और इस उपवासके अवसरपर भी, शुरूके उपवासोंके विपरीत में नमक और सोडा डालकर पानी पी लेता था । कारण कुछ भी हो उपवासके दिनों में पानीके प्रति मुझे अरुचि हो जाया करती है । नमक और सोडा मिला लेनेपर ही मैं पानी पी सकता हूँ। मुझे यह अनुभव हुआ कि पर्याप्त से अधिक पानी पीते रहने से आमाशय स्वच्छ रहता है और मुँह नहीं सूखता। तीन छटाँक या पाव-भर पानीमें पाँच ग्रेन नमक और उतना ही सोडा डाला जाता था और मैं ६-८ दफेमें सवा सेर या डेढ़ सेरके करीब पानी पी लेता था। मैं नित्य बिना नागा 'एनिमा' भी लेता था। करीब पौन पिन्ट पानीमें लगभग ४० ग्रेन नमक और उतना ही सोडा घोल दिया जाता था। एनिमामें गुनगुना पानी ही काममें लाया जाता था। नित्य बिस्तरेमें ही गीले कपड़ेसे मेरा बदन पोंछ दिया