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शरीरपर उपवासका असर

जाता था। गत वर्षके और इस वर्षके उपवासके दिनोंमें भी मुझे रात्रिमें अच्छी नींद आ जाती थी और में दिनमें भी आधा घंटा सो लेता था। पिछले उपवासके समय तो प्रथम तीन दिनतक में करीब-करीब सुबह चार बजेसे लेकर रातके आठ बजेतक काम कर लेता था। जिस बातको लेकर उपवास करना पड़ा था, उस बातपर चर्चा भी करता रहता था और अपना पत्र व्यवहार और सम्पादन कार्य भी मैंने जारी ही रखा था। चौथे दिन मेरे सिरमें जोरका दर्द हुआ; काम करना असम्भव हो गया और उसी दिन दोपहरसे मैंने सारे काम बन्द कर दिये। दूसरे ही दिन मुझे अच्छा मालूम होने लगा । थकावट दूर हो गई और सिरका दर्द भी करीब-करीब जाता रहा। छठे दिन और भी ताजगी मालूम होने लगी और सातवें दिन, जो मेरे मौनका दिन था, मैं ऐसा ताजा और शक्तिवान् हो गया कि मैं उस दिन उपवास सम्बन्धी अपना लेख भी लिख सका था और लिखते समय हाथ भी नहीं कांपा था ।

मुझे यह याद नहीं कि उपवासके दिनोंमें मुझे भूखकी पीड़ा होती थी या नहीं। उपवास खोलनेके समय तो मुझे कोई उतावली न थी। मुझे जिस समय उपवास खोलना चाहिए था उससे आध घंटा विलम्ब करके ही मैंने उपवास खोला था । उपवासके दिनों में कातनेके सम्बन्धमें भी कोई कठिनाई मालूम नहीं होती थी। मैं तकियेके सहारे बैठकर रोजाना लगभग आधा घंटासे भी ज्यादा देरतक अपनी मामूली गतिके साथ चरखा चला लेता था । रोजकी तीनों समयकी आश्रम प्रार्थनामें शरीक होना बन्द करनेकी जरूरत भी नहीं पड़ी थी । अन्तिम चार दिन तो मुझे चारपाईमें लिटाकर प्रार्थना स्थलमें ले जाया गया था। चाहता तो मैं वहाँ बैठ भी सकता था, लेकिन मैंने उस समय अपनी शक्तिको बचाये रखना ही ठीक समझा । मुझे कुछ अधिक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ा हो, सो याद नहीं है। हाँ, एक बात जरूर याद है; बीच-बीचमें जी मिचलाता था। लेकिन पानीका घूंट लेनेपर अक्सर आराम हो जाता था ।

मैंने लगभग ६ औंस सन्तरे और अंगूरका रस लेकर उपवास खोला था । एक नारंगी भी चूसी थी। दो घंटे बाद फिर मैंने यही किया। इस बार १० अंगूर ज्यादा लेकर अंगूरोंका रस धीरे-धीरे चूस लिया था फिर कुछ घंटे बाद तीसरे पहर एनिमा लिया। तत्पश्चात् उस दिन मैंने पौन पाव बकरीका दूध, एक छटाँक पानी मिलाकर पिया और उसके बाद एक नारंगी और दस अंगूर खाये थे। दूसरे दिन दूध बढ़ाकर ९ छटाँक कर दिया था। पानी तो उसमें हमेशा ही मिलाया जाता था। इस प्रकार डेढ़ सेर दूधतक रोजाना तीन-तीन छटाँक दूध बढ़ाता चला गया। पानी तो अब भी उसमें मिलाया जाता है लेकिन अब दूधकी हरएक खुराकमें केवल आधी छटाँक पानी ही मिलाया जाता है। कोई डेढ़ दिनतक मैंने खालिस दूध पीकर देखा था; लेकिन उससे कुछ भारीपन महसूस हुआ और खालिस दूधको ही इसका कारण समझकर फिर दूधमें पानी मिलाना आरम्भ कर दिया है।

उपवास खोलनेके बाद यह लिखते समय आज बारहवाँ दिन है। अबतक मैंने कोई भी ठोस खुराक नहीं ली है। अब भी फलोंका कुछ हिस्सा तो मैं रसके रूपमें

१. उपवास १ दिसम्बरको समाप्त हुआ था।