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टिप्पणियाँ

८. उपवासको छोड़कर अन्य किसी भी बातके बारेमें विचार किया जा सकता है।

९. किसी भी उद्देश्यसे उपवास क्यों न किया गया हो, उन अमूल्य दिनोंमें अपने सिरजनहारका, उसके साथके अपने सम्बन्धका और उसकी अन्य सृष्टिका विचार करना चाहिए। इससे ऐसी-ऐसी बातें मालूम होंगी जिसका पहले खयालतक न हुआ होगा ।

डाक्टर मित्रोंसे क्षमा मांगते हुए, लेकिन अपने अनुभवोंका और अपने-जैसे दूसरे सनकी लोगोंके अनुभवोंका पूरा खयाल करके मैं बिना किसी संकोचके यह कहूँगा कि यदि निम्नलिखित शिकायतें हों तो उपवास अवश्य ही किया जाये।

(१) कब्जियत, (२) शरीरमें रक्त की कमी, (३) बुखारकी हरारत मालूम होना, (४) बदहजमी, (५) सिरमें दर्द, (६) गठिया, (७) जोड़ोंमें दर्द, (८) बेचैनी और चिढ़, (९) उदासी, (१०) अतिशय आनन्दका अनुभव ।

यदि इन रोगोंके होनेपर उपवास किया गया हो तो डाक्टर बुलानेकी या पेटेंट दवाइयाँ खानेकी कोई जरूरत न रहेगी।

खाना तभी चाहिए जब भूख लगे और भोजनके योग्य पूरी मेहनत कर ली गई हो ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १७-१२-१९२५

५४. टिप्पणियाँ

बम्बईको गुजराती राष्ट्रीय शाला

जो राष्ट्रीय शालाएँ अपने ऊपर तलवार लटकती रहनेपर भी जीवित हैं उनमें एक बम्बईकी गुजराती शाला भी है। कहा जा सकता है कि यह अबतक केवल शिक्षकोंके उद्यमके बलपर ही टिकी हुई है। मुझे उम्मीद है कि बम्बईकी प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी इस शालाको चलायेगी अथवा इसके चलानेमें खासी अच्छी आर्थिक सहायता देगी।

८ तारीखको इस शालाका वार्षिक उत्सव मनाया गया था। इसमें विद्यार्थियोंने कुछ नाटक खेले, संगीतकी निपुणताका परिचय दिया तथा हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी और गुजराती में संवाद किये। इस सबसे कुछ विद्यार्थियोंकी कलाका अच्छा परिचय मिला। संगीत पहले एक बार और सुना था; इस बार उसकी अपेक्षा वह अधिक सरस था । संस्कृत शब्दोंका उच्चारण स्पष्ट था । विद्यार्थियोंने, कुल मिलाकर कमसे- कम मुझपर तो अपनी कलाकी अच्छी छाप छोड़ी।

शालाके विवरणसे मालूम होता है कि उसमें सारी शिक्षा मातृभाषाके माध्यमसे ही दी जाती है। शिक्षक इतिहास और भूगोल नयी पद्धतिसे पढ़ानेका दावा करते