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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आधारित औद्योगिक नीति अख्तियार की जाये तो उसके सम्बन्धमें सामान्यतया आधारित औद्योगिक नीति अख्तियार की जाये तो उसके सम्बन्धमें सामान्यतया आपका क्या विचार है ? क्या आप विज्ञानकी प्रगतिके हिमायती हैं ? ऐसी प्रगतिसे मेरा मतलब यह है कि वह प्रगति मानवसमाजके लिए आशीर्वाद रूप हो । उदाहरणके तौरपर फ्रांसके पैस्च्योरका और टोरन्टोंके डा० बेंटिंगका वैज्ञानिक कार्य ।

मैं इस प्रश्नका उत्तर सार्वजनिक रूपसे इसलिए दे रहा हूँ कि जगह-जगहसे विद्यार्थीगण मुझसे बहुतसे प्रश्न पूछा करते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि मेरे विज्ञान सम्बन्धी विचारोंके बारेमें बड़ी गलतफहमी फैली हुई है। यह विद्यार्थी जिस ढंगके उद्योगको प्रारंभ करनेकी कल्पना कर रहा है वैसे किसी भी प्रकारके प्रयत्नके बारेमें मुझे कोई भी एतराज नहीं है। बात इतनी ही है कि मैं उसे अनिवार्य रूपसे दयाधर्म मूलक कहनेको तैयार नहीं हूँ। मेरे नजदीक दया धर्ममूलक एक ही व्यवसाय है और वह है हाथ-कताईका शानदार और सजीव पुनरुद्धार । क्योंकि दरिद्रता उसीके जरिये दूर की जा सकती है-- दरिद्रता जो इस देशमें करोड़ों मनुष्योंका जीवन उन्हींके घरोंमें दीन और कान्तिहीन बना रही है। इस देशकी उत्पादन शक्ति- को बढ़ा सकनेवाली और दूसरी बातें भी इसमें शामिल की जा सकती हैं। इसलिए, विज्ञानको शिक्षा पाये हुए सब नवयुवकोंसे मैं तो यही चाहूँगा कि वे अपनी योग्यता इस देशके झोंपड़ोंमें चलनेवाले चरखोंमें ऐसा फेरफार करनेमें खर्च करें जिससे यदि सम्भव हो तो वह अधिक सूत उत्पादन करनेका एक अधिक कुशल साधन बन जाये । में विज्ञानकी विज्ञानके रूप में प्रगतिके विरुद्ध नहीं हूँ । प्रत्युत में विज्ञान-सम्बन्धी पश्चिमकी मनोवृत्ति और उत्साहका प्रशंसक हूँ । यदि मैं पूर्ण उत्साहसे प्रशंसा नहीं करता तो वह इसीलिए कि पश्चिमके वैज्ञानिक ईश्वरकी सृष्टिके निम्न श्रेणीवाले प्राणियोंका कुछ भी खयाल नहीं रखते हैं। प्राणियोंकी चीर-फाड़के प्रति मुझे हार्दिक घृणा है। विज्ञान और मनुष्यत्वके नामपर निर्दोष प्राणियोंकी जो अक्षम्य हत्या की जाती है उसे मैं नफरतकी नजरसे देखता हूँ । वे सभी वैज्ञानिक शोधे जो निर्दोष प्राणियोंके खूनसे रंगी हुई हैं मेरी दृष्टिमें श्रेयस्कर नहीं है। रक्त संचालनके सिद्धान्त- का प्राणि-व्यवच्छेदनके बिना अन्वेषण न हो पाता तो भी संसारका कार्य अच्छी तरह चल सकता था। मैं उस दिनके आनेकी आशा कर रहा हूँ, जब पश्चिमके प्रामाणिक वैज्ञानिक ज्ञानकी शोधके वर्तमान तरीकोंकी मर्यादा निश्चित कर देंगे। भविष्यके मापदण्डमें केवल मानवजातिका ही नहीं, समस्त प्राणि जगतका ख्याल रखा जायेगा । और जिस प्रकार अब हम धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूपसे इस बातको महसूस करते जा रहे हैं कि यदि हिन्दू समाज सोचता है कि वह अपने पाँचवें हिस्से- के लोगोंको गिरी हुई हालतमें रखकर खुशहाल रह सकता है तो यह उसकी सरासर भूल है अथवा पश्चिमके लोगोंका पूर्वके देशों या आफ्रिकामें रहनेवाले राष्ट्रोंका शोषण करके और उन्हें हीनावस्थामें पहुँचाकर अपनी उन्नतिकी इच्छा करना गलत खयाल है; उसी प्रकार समय आनेपर हम लोग यह भी समझ सकेंगे कि मानवको अन्य सष्टिसे जो अधिक बलशाली बनाया है सो इसलिए नहीं कि मनुष्य उनका वध करें