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एक विद्यार्थीके प्रश्न
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बल्कि इसलिए कि वह अपने साथ-साथ उनका भी कल्याण चाहे । मुझे इस बातका पूर्ण विश्वास है कि उनमें भी वैसे ही आत्मा है जैसे मुझमें है।

यह प्रश्न भी उसी विद्यार्थीका है: वे कहते ह :

हिन्दुस्तान में ईसाई मिशनरियोंके कार्योंके मूल्यके सम्बन्धमें आपकी स्पष्ट सम्मति क्या है। क्या आपका खयाल है कि इस देशके जीवन को बनाने में ईसाई मतावलम्बी कुछ सहायक हो सकते हैं? क्या ईसाई मजहबके बिना आप अपना काम चला सकते हैं ?

मेरी रायमें ईसाई मिशनरियोंने प्रकारान्तरसे हमें लाभ पहुँचाया है। सीधे तौर पर तो उनसे लाभके बदले हानि ही हुई है। मैं धर्मान्तर करनेके वर्तमान तरीकेके खिलाफ हूँ। दक्षिण आफ्रिका और हिन्दुस्तानमें धर्मान्तर करनेके जो तरीके काम में लाये जाते रहे हैं, अनेक वर्षांतक उनका अनुभव करने के बाद मुझे विश्वास हो गया है कि अपना धर्म छोड़कर ईसाई बन जानेवाले उन लोगोंकी जिन्होंने यूरोपीय सभ्यताको ऊपर-ऊपरसे ही देखा होता है, और जो ईसा मसीहके उपदेशका तत्त्व नहीं समझ पाये हैं, कोई नैतिक उन्नति नहीं हुई है। मेरे इस कथनका सम्बन्ध सामान्य लोगोंकी मनोवृत्तिसे ही है, उज्ज्वल अपवादोंसे नहीं। अवश्य ही, परोक्षरूपसे ईसाई मिश- नरियोंके प्रयत्नसे हिन्तुस्तानको बहुत-कुछ लाभ हुआ है। उसने हिन्दू और मुसलमानोंके मनमें अपने-अपने धर्मकी गहराईमें जानेकी इच्छा जगाई और उसने हमें अपने घरको व्यवस्थित रखनेके लिए विवश किया। चूंकि मिशनरियोंके शिक्षालयों और अस्पतालों इत्यादिकी स्थापना भी शिक्षा देनेके लिए या चिकित्सालय खोलनेके उद्देश्यसे नहीं, बल्कि धर्मान्तरके उद्देश्यसे ही की गई है इसलिए मैं उन्हें भी परोक्ष रूपसे होनेवाले लाभोंमें ही गिनता हूँ ।

यदि संसारका काम और इसलिए हमारा काम भी, मुहम्मद या उपनिषदोंके उपदेशोंके बिना नहीं चल सकता तो ईसामसीहके उपदेशोंके बिना भी नहीं चल सकता। मैं तो इन सबकी शिक्षाको एक दूसरेकी पूरक शिक्षा ही मानता हूँ. - एक- दूसरेसे अलग कदापि नहीं। इन उपदेशोंका सच्चा अर्थ परस्परावलम्बन और परस्पर स्नेह-सम्बन्ध ही है; किन्तु अभी हमें यह चीज समझनी बाकी है। हम लोग अपने- अपने धर्मके मानो उदासीन प्रतिनिधि हैं और प्रायः हम लोग उसका उपहास ही करते हैं ।

इस विद्यार्थीका तीसरा प्रश्न इस प्रकार है:

क्या आज भी हम भारतवर्षके राज्योंके संघमें देशी राज्योंको जैसाका तैसा रहने देंगे या वहाँ भी प्रजातन्त्र स्थापित करना चाहेंगे ? राजनैतिक ऐक्यको कायम करनेके लिए हमारी सामान्य राष्ट्रभाषा क्या होगी? अंग्रेजीको ही हम क्यों न राष्ट्रभाषा बनायें ?

देशी राज्योंका, चाहे दिखाई न दे, स्वरूप बदलता चला जा रहा है। जब हिन्दुस्तानका बहुत बड़ा हिस्सा प्रजातन्त्र हो जायेगा उस समय देशी राज्योंमें [एककी ]