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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सत्ता न चल सकेगी। परन्तु यह कोई नहीं कह सकता है कि हिन्दुस्तानके प्रजातन्त्रका रूप कैसा होगा । अंग्रेजीके ही देश-भरकी भाषा बने रहनेपर देशका भविष्य क्या होगा, इसे समझ लेना बहुत आसान है। उस समय वह प्रजातन्त्र कुछ थोड़े ही लोगोंका शासनतन्त्र होगा। परन्तु यदि हम हिन्दुस्तानकी पूरी जनताको राजनीतिक दृष्टिसे एक देखना चाहते हैं और यही होना भी चाहिए, तो उसके भावी स्वरूपके बारेमें कहना साधारण व्यक्तिका काम नहीं है। हिन्दुस्तानकी जनताकी सामान्य भाषा अंग्रेजी तो कभी भी नहीं हो सकती। वह तो जिसे मैं हिन्दुस्तानी कहता हूँ और जो हिन्दी और उर्दूका मिला-जुला रूप है, वही हो सकेगी। हमारे अंग्रेजी के व्याख्यानोंने हमें हमारे करोड़ों देशवासी भाइयोंसे जुदा कर दिया है। अतः हम लोग अपने देशमें ही विदेशी बन गये हैं। अंग्रेजी में व्याख्यान देनेकी आदतने हिन्दुस्तानके राजनीतिज्ञोंके मनमें जो घर कर लिया है उसे मैं अपने देश और मनुष्यत्वके प्रति अपराध मानता हूँ, क्योंकि हम लोग अपने ही देशकी उन्नतिमें रोड़ा अटकानेवाले बन गये हैं। और यदि इस देशकी, जो आखिर एक महान देश है, उन्नति होती है तो वह पूरे मानव समाज- की उन्नति मानी जायेगी। इसी प्रकार मानव समाजकी उन्नतिमें भारतकी उन्नति निहित है। जो अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग गाँवोंमें जा बसे हैं, उनमें से प्रत्येककी समझमें यह ध्रुव सत्य बैठ गया है। मेरे हृदयमें अंग्रेजी भाषाके प्रति और अंग्रेज लोगोंके अनेक अच्छे गुणोंके प्रति मान है और मैं उनकी प्रशंसा करता हूँ । लेकिन मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि अंग्रेजी भाषा और अंग्रेज लोग हमारे जीवनम वह स्थान प्राप्त किये हुए हैं जिससे हमारी प्रगति रुक रही है; और उनकी भी ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १७-१२-१९२५

६४. गत वर्षका खादी-कार्य

अखिल भारतीय खादीमण्डलके जो अब अखिल भारतीय चरखा संघके रूपमें परिणत हो गया है, गत वर्षके कार्यके विवरणसे कुछ जानने योग्य बातें मालूम हो सकेंगी। मैं उसे पढ़ जानेकी सिफारिश केवल खादी प्रेमियोंसे ही नहीं, उसके आलो- चकों और शंकालु सज्जनोंसे भी करता हूँ । विवरण अ० भा० चरखा संघके मन्त्री, साबरमतीको लिखने से मिल सकता है। उसमें खादी सम्बन्धी एक भी त्रुटिका उल्लेख नहीं छोड़ा गया है। उसमें प्रान्तीय संस्थाओंकी ढिलाई और उनकी उदासीनता के सम्बन्ध में काफी लिखा गया है; और चरखेके प्रचारमें जो महान् कठिनाइयाँ उप- स्थित हो रही हैं, उनका भी जिक्र है। लेकिन यह सब कहनेके बाद भी संघ द्वारा किये गये ठोस कार्यके इस विवरणसे मालूम होगा कि खादीने कितनी प्रगति की है। वह प्रगति जबर्दस्त कही जाने योग्य नहीं है; ऐसी भी नहीं है कि गाँवोंमें रहनेवालोंके जीवनपर उसका असर पड़े, और न इतनी व्यापक ही है कि उसके बलपर विदेशी कपड़ेका बहिष्कार, जिसके लिए हम लोग बहुत उत्सुक रहते हैं, किया जा सके ।