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गत वर्षका खादी-कार्य

फिर भी वह प्रगति सराहनीय अवश्य है। ऊपर-ऊपरसे देखनेवाले व्यक्ति मुझसे कहते है कि खादीकी प्रवृत्ति मन्द पड़ गई है; क्योंकि शहरोंमें अब उन्हें पहलेकी अपेक्षा सफेद टोपियाँ कम नजर आती हैं। मैं 'सफेद टोपियाँ' इसलिए लिख रहा हूँ कि अब वे खादीकी नहीं होतीं। अबतक मैं जान गया हूँ कि इन टोपियोंमें बहुत पाखण्ड था। इन टोपियोंको पहननेवाले लोग उन सच्चे प्रामाणिक मनुष्योंमे कुछ अधिक खादीप्रेमी न थे, जो विदेशी कपड़ोंका त्याग नहीं कर सकते थे और इसलिए महज दिखावेके लिए या उससे भी किसी हीन उद्देश्यसे, खादीकी टोपी पहनना ठीक नहीं मानते थे। आंकड़ोंसे तो आज दूसरी ही बात स्पष्ट होती है । १९२१में जितनी खादी बनती थी, उससे अब अधिक बनने लगी है, चरखे भी अधिक चल रहे हैं, उनसे सूत भी अधिक निकलता है और जो खादी तैयार होती है वह चार वर्ष पहले- की खादीसे कहीं अधिक अच्छी होती है। कार्य अब अधिक व्यवस्थित और नियमित हो गया है और इसलिए अब शीघ्रतासे प्रगति की जा सकती है। मजदूरी लेकर कातनेवाले लोग भी पहलेकी बनिस्बत अधिक हैं। और स्वेच्छासे कातनेवालोंकी संख्या भी मंद गतिसे सही, किन्तु बढ़ रही है। इस समय खादीके संगठन कार्यमें लगे जितने स्त्री-पुरुषोंको रोजी मिल रही है वह अन्य किसी राष्ट्रीय कार्यकी अपेक्षा बहुत अधिक है। खादी उत्पादनका व्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जो निरन्तर बढ़ेगा । प्रामाणिक, बुद्धिमान और मेहनत करनेवाले कार्यकर्ताओंको अच्छा वेतन देनेकी उसकी शक्ति लगभग असीम है। खादी कार्यमें अवैतनिक राष्ट्रीय कार्यकर्त्ताओंकी संख्या भी सर्वाधिक है। और इस सबसे बढ़कर तो यह बात साबित हो जानी है कि योग्य और व्यवस्थित किसी इस प्रकारके संगठनके बिना, जो खादीका ही कार्य करता हो और जिसमें वैतनिक या अवैतनिक बहुतसे योग्य कार्यकर्त्ता काम करते हों, खादीका कार्य नहीं चल सकता। उसके तकनीकी विभागने कुछ महत्वकी शोधे भी की हैं जैसे थोड़े सूतको भी दबाकर उसकी गाँठे बनानेके लिए दाब-यन्त्रको सुधारा गया है। इस विभागमें खादी और सूतके नमूनोंकी परीक्षा की जाती है और नकली खादी फौरन ही पहचानी जा सकती है। अपने-अपने घरों में रहते हुए काम या संगठन करनेके लिए विद्यार्थी भी तैयार किये जाते हैं। रँगाईके प्रयोग किये जाते हैं और ऐसी खादी तैयार करनेका प्रयोग भी हो रहा है जिसमें से पानी न बह सके । इन दोनों प्रयोगोंमें ठीक-ठीक सफलता मिली है। जो लोग खादीके कार्यके सम्बन्धमें शंकित रहते हैं उन्हें यह रिपोर्ट मँगाकर तथ्योंकी जाँच द्वारा अपना मन भर लेना चाहिए। यदि उसे पढ़नेपर उन्हें सन्तोष हो जाता है तो उन्हें संघके सभासद बनना चाहिए और जो लोग उसकी शर्तोंको अब भी पूरा नहीं कर सकते हैं उन्हें चाहिए कि वे किसी-न-किसी प्रकारका काम करके उसकी मदद करें, या अपनी सामर्थ्यानुसार धनसे ही संघको सहायता दें ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १७-१२-१९२५