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६५. टिप्पणियाँ

कौन्सिल प्रवेश

एक अमेरिकी पत्रकार लिखते हैं :

आपके द्वारा विधानसभा प्रवेशका किसी भी प्रकारका समर्थन देखकर मुझे अफसोस होता है। यदि आजको स्थितिपर पहुँचने से पहले आप सही थे तो अब गलतीपर हैं। मैंने विधानसभाकी हमेशा उस टीनके टुकड़के साथ उपमा दी है जो बच्चेको फुसलानेके लिए यह कहकर दिया जाता है कि मुन्ने यह लो चन्दा; इससे जी-भरकर खेलो तुम यही चाहते थे न ।

मेरे लेखोंमें से कुछ इधरसे और कुछ उधरसे पढ़कर लेखकने स्पष्टत: मेरी स्थिति- को गलत समझ लिया है। विधानसभा प्रवेशके सम्बन्धमें मेरे अब भी वे ही विचार बने हुए हैं जो १९२० - २१में थे। मैं कौंसिल प्रवेशका समर्थक नहीं हूँ; लेकिन मैं व्यावहारिक आदमी होनेका दावा करता हूँ। जो बातें मेरे सामने स्पष्ट हैं उनकी ओरसे मैं अपनी आँखें नहीं मूंदता और उनसे इनकार नहीं करता। मैंने इस बातको देख-समझ लिया है कि मेरे कुछ सर्वोत्तम मित्र और सहयोगी जो १९२०-२१में मेरे साथ थे अब दूसरी नावपर जा बैठे हैं और उन्होंने अपना मार्ग बदल दिया है। वे भी राष्ट्रके उतने ही अच्छे प्रतिनिधि है जितना कि मैं खुदको माननेका दावा करता हूँ। अतएव मेरे लिए यह निर्णय करना कि मैं अपने मार्गको उनके मार्गके साथ कहाँतक जोड़े रहूँ, जरूरी हो गया है। चूंकि विधानसभा प्रवेशकी बात एक अनिवार्य तथ्य बन चुका था, इसलिए मुझे अपने सहयोगियों अर्थात् स्वराज्यवादियोंको इसमें जितनी भी मदद मुझसे हो सके, देनेमें कोई हिचकिचाहट नहीं मालूम हुई, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि मैं खुद शान्ति चाहनेवाला हूँ, फिर भी सत्ता हथिया लेनेवाले यूरोपीयोंके खिलाफ बहादुर रिफोंके प्रति सहानुभूति प्रदर्शित किये बिना नहीं रह सकता ।

मालवीयजी और लालाजी

हिन्दू महासभाके एक उत्साही सदस्यने मेरे पास 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' में उत्तर दिये जानेके विचारसे १५ प्रश्न भेजे हैं। एक दूसरे महाशयने इन्हीं प्रश्नोंमें निहित ढंगके तर्क देते हुए कई विषयोंपर अपने विचार व्यक्त किये हैं। मैं उन सब प्रश्नों के उत्तर तो नहीं देना चाहता, लेकिन उनमें कुछ ऐसे हैं जिन्हें छोड़ा नहीं जा सकता; क्योंकि उन प्रश्नोंमें पण्डित मदनमोहन मालवीयजी और लालाजीपर वर्तमान- पत्रोंमें जो आक्रमण हो रहा है, उस ओर मेरा ध्यान खींचा गया है। सम्बन्धित प्रश्न इस प्रकार हैं:

१. मोरक्कोकी एक जाति ।