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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वातावरण अत्यन्त अशान्त है। यदि कोई प्रिटोरियासे जोहानिसबर्ग जाये तो उसे वहाँ वैसी ही घबराहटका अनुभव होगा जैसी हिन्दुस्तानके किसी कोलाहल रहित गाँव अथवा छोटे कस्बेसे आनेवाले मनुष्यको बम्बईके कोलाहल-भरे व्यस्त वातावरणमें हो सकती है। यदि हम यह कहें कि जोहानिसबर्गके लोग चलते नहीं बल्कि दौड़ते-से लगते हैं तो इसमें कोई अत्युक्ति न होगी। किसीको किसीकी ओर देखनेका अवकाश नहीं है और सभी लोग इसी धुनमें डूबे हुए जान पड़ते हैं कि कमसे-कम समयमें अधिकसे-अधिक धन कैसे बटोरें। यदि हम ट्रान्सवालसे भीतरकी ओर पश्चमकी दिशामें चलें तो ऑरेंज फ्री स्टेट अथवा ओरेन्जिया उपनिवेश आ जाता है। इसकी राजधानी ब्लूमफटीन है। यह बहुत ही शान्तिपूर्ण एक छोटा-सा शहर है। ऑरेंजिया में खानें आदि नहीं हैं। वहाँसे रेलमें कुछ घंटे यात्राके बाद केप कालोनीकी सीमा शुरू हो जाती है। केप कालोनी यहाँका सबसे बड़ा उपनिवेश है और इसकी राजधानी केप- टाउन सबसे बड़ा बंदरगाह है। केप ऑफ गुड होप, आशा-अन्तरीप यहीं है। जब वास्को- डि-गामा हिन्दुस्तानकी खोजके लिए पुर्तगालसे निकला था तो उसने अपने जहाजका लंगर यहीं डाला था और यहीं उसको यह आशा बँधी थी कि उसकी कामना अवश्य पूरी होगी। इसीलिए उसने इस स्थानका नाम आशा-अन्तरीप रखा ।

इन चार मुख्य ब्रिटिश उपनिवेशोंके अतिरिक्त ब्रिटिश साम्राज्यके संरक्षणमें कुछ अन्य अंचल भी हैं जिनमें दक्षिण आफ्रिकाके आदिवासी यूरोपीयोंके आगमनके बहुत पहलेसे रहते चले आते हैं।

दक्षिण आफ्रिकाका मुख्य धन्धा खेती है; यह देश इसके लिए है भी बहुत अच्छा । इसके कुछ भाग तो अत्यन्त उपजाऊ और रमणीक हैं। अनाजोंमें मक्का सबसे अधिक और सुगमताके साथ होती है। दक्षिण आफ्रिकाके वतनी, हब्शियोंका मुख्य आहार यही है। कुछ भागोंमें गेहूँ भी होता है। दक्षिण आफ्रिका फलोंके लिए तो प्रसिद्ध ही है। नेटालमें अनेक प्रकारके और बहुत मीठे केले, पपीते और अनन्नास होते हैं और इतने भरपूर कि गरीबसे गरीब आदमी भी उनको पा सकता है। नेटाल और दूसरे उप- निवेशोंमें नारंगी, संतरा, आडू और खूबानी इतने अधिक होते हैं कि गाँवोंमें हजारों लोग सामान्य श्रम कर उन्हें बिना पैसेके प्राप्त कर लेते हैं। केप कालोनी तो अंगूर और बड़ी किस्मके बेरोंका देश है। जैसे अंगूर वहाँ होते हैं वैसे दूसरी जगह् शायद ही होते हों। मौसममें उनकी कीमत भी इतनी कम होती है कि गरीब लोग भी उन्हें भरपेट खा सकते हैं। जहाँ हिन्दुस्तानी रहते हैं वहाँ आम न हों यह नहीं हो सकता । हिन्दुस्तानियोंने वहाँ आमोंकी गुठलियाँ बोई थीं। फलस्वरूप दक्षिण आफ्रिकामें आम भी पर्याप्त मात्रामें मिल सकते हैं और उनकी कुछ किस्में तो बम्बईके हापुस और पायरी आमका मुकाबला कर सकती हैं। इस उपजाऊ भूमिमें शाक-सब्जी भी बहुत होती है। कहा जा सकता है कि खानेके शौकीन हिन्दुस्तानी, हिन्दुस्तानकी लगभग सभी शाक-सब्जी वहाँ पैदा करने लगे हैं।

१. सबसे पहले १६५७ में दिपाजने इस अन्तरीपकी खोज की थी और इसका नाम केप ऑफ स्टॉम्से रखा था। बादमें राजा जॉनने इसका नाम बदल कर केप ऑफ गुड होप रखा।