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क्या आपके मनमें उनके नेक उद्देश्योंके बारेमें कोई शंका है ? क्या आप- का यह खयाल है कि वे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे हिन्दू-मुस्लिम ऐक्यके विरोधी हैं ? क्या आप मानते हैं कि वे देशको जानबूझकर किसी भी प्रकारकी हानि पहुँचा सकते हैं ?

मैंने देखा है कि देशके इन भक्तोंपर ऐसे आरोप लगाये जाते रहते हैं । मैं यह भी जानता हूँ कि इन दोनों प्रसिद्ध सार्वजनिक कार्यकर्त्ताओंके प्रति मेरे बहुतसे मुसलमान मित्रोंके दिलों में पूरा-पूरा अविश्वास है। लेकिन, मैं बहुतेरी बातोंके बारेमें उनसे कितना ही मतभेद क्यों न रखूं, इन दोनोंमें से किसी एकके लिए भी मेरे मनमें अविश्वासको भावना कभी नहीं आई । हाँ, यह जरूर है कि मैंने मुसलमानी क्षेत्रोंमें मालवीयजी और लालाजीपर आक्षेप होते हुए देखे हैं और उसी प्रकार हिन्दू क्षेत्रों में कुछ प्रमुख मुसलमानोंपर भी ऐसे आक्षेप होते हुए देखे हैं। मैं उनमें से किसी भी पक्षके आक्षेपोंको सच नहीं मान पाया हूँ। लेकिन मैं किसी भी पक्षको अपना मन्तव्य समझा सकने में सफल नहीं हो पाया हूँ । मालवीयजी और लालाजी दोनों ही देशके कसे हुए सेवक हैं । ये दोनों महानुभाव बहुत दिनोंसे लगातार देशकी प्रशंसनीय सेवा करते आये हैं। उनके और मेरे बीच किसी प्रकारका दुराव-छिपाव नहीं रहा है, और मुझे एक भी ऐसा अवसर याद नहीं आता कि जब मैंने उन्हें मुसलमानोंके विरोधी के रूपमें पाया हो । मेरा आशय यह नहीं है कि उन्होंने मुसलमान नेताओंका अविश्वास नहीं किया; और न यह कि इस बड़ी कठिन और नाजुक समस्याके समा- धानके सम्बन्धमें हम लोग एकमत हैं। उन्हें ऐक्यकी आवश्यकता के बारेमें कुछ भी सन्देह नहीं रहा है और उन्होंने अपने-अपने विचारोंके अनुसार ऐक्यके लिए प्रयत्न भी किया है। मेरी रायमें तो इन नेताओंके उद्देश्यके सम्बन्धमें शंका करना ऐक्यके ही घटित होनेके सम्बन्धमें शंका करना है । जब हम लोग समझोता करेंगे - - और किसी-न-किसी दिन हमें यह करना ही होगा - उस समय उनकी बातोंका हिन्दू समाज में उतना ही महत्व माना जायेगा जितना कि मुसलमानोंमें, उदाहरणार्थ मौलाना अबुल कलाम आजाद और हकीम साहबकी बातोंका माना जायेगा । निस्सन्देह प्रत्येक सार्वजनिक कार्यकर्ताको में यही सलाह देता हूँ कि जबतक किसी कार्यकर्त्ता के विरुद्ध कोई निश्चित प्रमाण न मिले तबतक उसके द्वारा कहे गये शब्दों को ही विश्वासका आधार मानना चाहिए। विश्वास रखनेवालेका इससे कुछ भी नहीं बिगड़ता है । शंका और अविश्वासके वातावरणमें सार्वजनिक जीवन यदि असम्भव नहीं तो असह्य अवश्य हो जाता है ।

खादी प्रदर्शनी

एक महाशयने पत्र लिखकर पूछा है कि कांग्रेस अधिवेशन सप्ताहके दरम्यान कानपुरमें जो खादी प्रदर्शनी होनेवाली है उसमें चरखेके सूत तथा विदेशी या देशी मिलोंमें बने सूतके मिश्रणसे तैयार की गई खादी या दरियाँ भी रखी जा सकेंगी या नहीं ? बेलगाँवमें भी इसी प्रकारका प्रश्न उठा था और उस समय यह निर्णय