भीष्मादिने कौरवोका साथ दीया वह तो ऐसा कहकर की वे पेटके लीये करते थे। उसमें कोई नीति नहीं थी। विदुरजीने हिस्सा न लीया वह पापकी बात न थी । विभीषणने दुष्ट भाईका साथ छोड़ दीया वह पुण्य कर्म था ।
आपका,
मोहनदास गांधी
मूल पत्र (जी० एन० ७६६) की फोटो-नकलसे ।
६८. पत्र: केशवदेव नेवटियाको
वर्धा
पौष शुक्ल ३ [१८ दिसम्बर, १९२५]
चि० कमला और चि० रामेश्वरकी शादी साबरमतीमें करना मुझको ज्यादा
अच्छा प्रतीत होता है। दूसरोंपर असर डालनेके प्रलोभनसे मैंने बम्बईमें शादी करनेमें
संमति चार मास पूर्व दी थी । परन्तु विचारने के बाद मुझे ऐसा लगता है कि हमारे
केवल वर कन्याके भले की दृष्टिसे ही ऐसी बातोंका निर्णय करना चाहिये । विवाह
धार्मिक विधि है। वर-कन्याके लिये एक नया जन्म है । उसको जितनी शांतिसे
और जितने धार्मिक वायुमें किया जाये इतना उनके लिये बेहतर है। ऐसा वायु तो
जब हम आडंबरको छोड़ें और शांतिमय रहें तब ही पैदा हो सकता है। संभव है
कि स्त्री वर्गको कुछ क्लेश होगा । इस क्लेशको क्षणिक समझ कर जो उचित है
उसीको करना हमारा कर्तव्य है ऐसी मेरी मति है। इसलिये मैं चाहता हूँ कि
आप भी साबरमती में विवाह करनेम सम्मति दें। मुझको वहाँ विवाह होनेमें न कोई
उपाधि है न कष्ट है।
आपका,
मोहनदास गांधी
१. पुस्तकमें प्राप्य जमनालाल बजाजकी डायरीके अनुसार वे ३०-१-१९२६ से पहले केशवदेव नेवटिया से झील चुके थे और आश्रममें ही कमला तथा रामेश्वरका विवाह करना निश्चित कर चुके थे।