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६९. पत्र : पूँजाभाईको

वर्धा

पौष बदी ३ [ १८ दिसम्बर, १९२५]

भाई पूंजाभाई,

तुम बहुत नियमपूर्वक पत्र लिख रहे हो। यह बात तुम्हारा कल्याण करेगी । मुझे आशा है कि तुमने वालकृष्णके प्रवचनका जो व्यवस्थित विवरण रखा है, उसे मैं पढ़ सकूँगा । यदि अन्य लोग तुम्हारे काममें अव्यवस्था पैदा करें तो तुम उन्हें विनयपूर्वक ऐसा न करने के लिए कहना । यदि तुम्हारे कहनेके बावजूद अव्यवस्था रहे तो उसे अनिवार्य समझकर उसके प्रति सहिष्णुताका भाव रखना लेकिन उनपर कभी क्रोध न करना। भजनोंपर पूरी तरह विचार करना ।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च : ]

न पचनेके कारण तुम्हारा आहार कम हो जाये तो चिन्ताकी कोई बात नहीं। शरीरकी शक्ति कम मत होने देना ।

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० १८७) से ।

सौजन्य : नारणदास गांधी

७० मेरा धर्म

‘मेरा धर्म' क्या है मेरे बहुतसे मित्र मुझे यह बताते रहते हैं। मुझे उनका ऐसा करना अच्छा लगता है। वे मुझे निस्संकोच लिखते हैं, इससे उनका मेरे प्रति प्रेम और मुझपर उनका यह विश्वास व्यक्त होता है कि उनके कहनेका मुझे दुख नहीं होगा। ऐसा एक पत्र मुझे अभी मिला है। पत्र लिखनेवाले हैं प्रसिद्ध गुजराती कार्यकर्तागण जो अपने-अपने जिलेके नेता हैं। पाठक यह तो सहज ही समझ सकते हैं कि उन्होंने यह पत्र सद्भावसे प्रेरित होकर ही लिखा है।

इसलिए मैं इस पत्रको यहां कुछ छोटा करके प्रकाशित कर रहा हूँ :

१ डाकखानेकी मुहरमें साबरमती, २१ दिसम्बर, १९२५ तारीख हैं, १९२५ में पौष बदी ३, १३ जनवरी की थी; इसलिए तिथिमें बदी सुदीके बजाय लिख दी गई जान पड़ती है।

२. यहाँ नहीं दिया गया है। पत्र लिखनेवाले सज्जनोंने सुझाव दिया था कि गांधीजी अमेरिका, यूरोप और आफ्रिका में एक वर्ष भ्रमण करें ।