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मेरा धर्म

अस्पृश्यता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। उसका प्राण चला गया है। अब केवल निर्जीव शरीर ही दिखाई दे रहा है।

आज स्वराज्य प्राप्तिके प्रयत्नोंमें भी जो मतभेद होता जा रहा है, उससे हमें निराश होनेका कोई कारण नहीं है। स्वतन्त्रता प्राप्त करनेवाले सभी राष्ट्रोंमें ऐसी स्थिति आती है। उसपर विचार करना और उसके निराकरणके लिए प्रयत्न करना हमारा कर्तव्य है; लेकिन उससे हार मान बैठना तो हमारी कायरताका ही सूचक होगा । यहाँसे हारकर अमेरिका जानेवाला मनुष्य अमेरिकाको क्या देगा अथवा वहाँसे क्या लायेगा ? अमेरिका अथवा यूरोपका मेरे प्रति जो मोह है, उससे मैं भुलावेमें नहीं पड़ सकता । पश्चिमसे सहायताकी भीख मांगनेसे हमें कुछ भी लाभ नहीं होगा। मैं पश्चिमका प्रमाणपत्र लेकर यहाँ वापस आऊँ, तो यह मेरे लिए और भारतके लिए भी लज्जाकी बात होगी। अभी फिलहाल तो मुझे अमेरिका या यूरोप जानेका कोई भी कारण दिखाई नहीं दे रहा। कोई भी यह खयाल न कर ले कि अमेरिका या यूरोपके नेता मुझसे मिलने के लिए या मेरी बातें सुननेके लिए बेचैन हैं। वहाँ मेरी जो-कुछ प्रतिष्ठा है वह ऐसे लोगों में है जिनकी आवाज नक्कारखाने में तूतीकी आवाजके समान है। जान पड़ता है उन बेचारोंको भी मेरे ही समान कोई काम नहीं है; इसलिए वे हवाई किले बनाते और संसारको सुधारनेकी योजनाएँ गढ़ते रहते हैं। जबतक मुझमें सत्य और अहिंसा होगी तबतक मैं उनका प्रेमपात्र बना रहूँगा । लेकिन पाठक यह समझ लें कि पश्चिमी देशोंकी सत्ताकी बागडोर उनके हाथमें नहीं है। मेरा जो कुछ भी बल है वह यहीं कामका साबित हो सकेगा। 'दूरके ढोल सुहा- वने' मालूम होते हैं। मैं यहाँसे हटते ही स्थानभ्रष्ट हो जाऊँगा; और स्थानभ्रष्ट व्यक्तिका संसारमें कोई स्थान नहीं होता ।

इस समय आफ्रिकामें भी मेरा कुछ वश न चलेगा। 'काबे अर्जुन लूटियों, वही धनुष वही बाण,' ऐसी ही मेरी स्थिति समझें। वहीं आज मेरा कृष्ण मेरे साथ न होगा। सहज प्राप्त युद्धमें ही सैनिक प्रतिष्ठा पाता है। जो युद्धकी खोजमें फिरता है,. वह जुआरी है। मैं यह कह सकता हूँ कि मैंने आजतक जुआ कभी नहीं खेला । एक बार जुएका खेल खेला भी था; किन्तु मैं उसमें सद्भाग्यसे हारा ही था।

यदि भारत और भारतके नेता मुझसे थक गये हैं तो मेरे लिए केवल हिमालयका ही मार्ग बचा है। हिमालय अर्थात् घवलगिरी नहीं। मेरा अभिप्राय अपने हृदयके हिमालयसे है। उसकी किसी गुफामें बैठ जाना मेरे लिए बहुत ही आसान है। लेकिन मैं उसे भी ढूंढ़ने नहीं जाऊँगा; बल्कि वही मुझे ढूंढ़ लेगी। जो भक्त हैं वे ईश्वरके पास नहीं जाते। यदि जायें तो वे उसका तेज सहन नहीं कर सकते । इसीलिए ईश्वर ही भक्तोंके पास आता है। और वे जिस भावसे उसे भजते हैं, वह उन्हें उसी रूपमें दर्शन देता है। मेरा ईश्वर जानता है कि मैं उसीकी प्रतीक्षामें बैठा हूँ। मेरे लिए तो उसका इशारा ही काफी होगा ।

'काचे रे तांतणे मने हरिजीये बांधी - जेम ताणे तेम तेमनी रे । '

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