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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

“मुझे हरिने कच्चे धागेसे बाँध लिया है। वे जिस प्रकार चाहें मुझे नचायें । मैं उन्हींकी हूँ।" मीराबाईने यह गाया है। मैं मीराबाईका शिष्य हूँ; इसलिए किंचित परिवर्तनके साथ मुझे भी इसे गानेका अधिकार है। इस धागेके इशारेपर नाचनेके लिए मैं सदा तत्पर रहता हूँ और इसलिए सदा ही सुतका धागा कातता रहा हूँ और 'मनके मुसाफिर को यह याद दिलाता रहता हूँ कि उसे अपने देशकी ओर रवाना होनेके लिए सदा तैयार रहना है, फिर वह देश- चाहे हृदयकी गुफा हो, चाहे कोई अन्य अनजान देश । जहाँ जाऊँगा वहाँ मेरा प्रभु तो होगा ही; इसलिए मैं निर्भय हूँ ।

मैं हर जिलेमें खादीकी दूकाने तत्काल खोल दे सकता हूँ। किन्तु इसके लिए प्रत्येक जिलेके कार्यकर्ताओंको यह यकीन दिलाना चाहिए कि वे एक निश्चित मात्रा में खादीकी बिक्री तो अवश्य ही कराते रहेंगे। इस सम्बन्धमें विशेष जानकारी प्राप्त करनेके लिए तो खादी मण्डलको लिखा जाना चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २०-१२-१९२५

७१. टिप्पणियाँ

कालीपरज सम्मेलन

कालीपरज और भील, इन दोनों जातियोंके दो सम्मेलन हाल ही में भील सम्मेलनकी रिपोर्ट तो मैंने नहीं देखी है, कालीपरज सम्मेलनकी रिपोर्ट देखी है; क्योंकि भाई जुगतरामने वह 'नवजीवन' में प्रकाशनके लिए भेजी है। मैं उसे नीचे देता हूँ। दोनों कौमोंमें अच्छा काम हो रहा है। दोनोंमें कुछ साम्य है। दोनोंमें अच्छा काम करनेवाले लोग हैं। इन दोनोंकी सेवाके द्वारा हम स्वयं अपनी सेवा करेंगे। भगवान करे, दोनों कौमें जागृत हों और देशकी सेवा करनेमें भाग लें। स्वयं मनुष्य बनना, मानव जातिकी कम सेवा नहीं है। आशा है कि ये जातियाँ मद्यपान आदि त्याग देंगी, समाजमें अपना योग्य स्थान ग्रहण करेंगी और कर्त्तव्यपरायण बनेंगी। कार्यकर्तागण उन्हें इस कार्यमें सहायता देंगे ।

भंगी भोज

श्री मोहनलाल पण्ड्या लिखते हैं :

मैं उम्मीद करता हूँ कि भंगी भाई अपनी ली हुई प्रतिज्ञाका पालन करेंगे।

[गुजरातीसे ]
नवजीवन , २०-१२-१९२५


१. यहाँ नहीं दी गई है।

२. यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें अन्य बातोंके अलावा यह बताया गया था कि भंगियोंने कुछ बुरी आदतोंको छोड़नेका निश्चय किया है।