पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/३४९

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७२. पत्र : सरोजिनी नायडूको

२० दिसम्बर, १९२५

हम कानपुरमें एक नारी द्वारा पुरुषके पदच्युत किये जानेके समय मिलेंगे ! उससे पहले यह मेरा अंतिम पत्र होगा। तुम्हारे शब्द, भगवान करे, बिलकुल खरे साबित हों और तुम भारतीय नारीत्व और हिन्दुत्वकी शोभा बनो। तुम्हारे शब्द हिन्दू, मुसलमानोंके जख्मपर मरहमका काम करें। तुम इतनी महान् हो कि कायरता- पूर्ण कार्योंके प्रदर्शनपर ध्यान ही नहीं दोगी।

[ अंग्रेजीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।

सौजन्य : नारायण देसाई

७३. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश

२० दिसम्बर, १९२५

तुम्हें कितने दिनतक आराम करना है, उसकी गिनती आज ही क्यों लगायें ? जबतक तुम्हारा शरीर नीरोग नहीं होता तबतक तो तुम्हें आराम करना ही है । हम पहले आवश्यक उपाय करें; फिर अधीर होनेका कोई कारण ही न रहेगा।

[गुजरातीसे ]
बापुनी प्रसादी

७४. भाषण : वर्धामें

२१ दिसम्बर, १९२५

मुझे दक्षिण आफ्रिकासे आये दस वर्ष हो चुके हैं। इस बीच यहाँ मुझे लोगोंके सैकड़ों पत्र मिले और मैंने उनके उत्तर भी दिये, 'यंग इंडिया' तथा 'नवजीवन' में भी अनेक बार स्पष्टीकरण किया। तथापि अब वर्धा आश्रम में आ जानेपर भी मुझसे केवल वे ही सब बातें पूछी जा रही हैं। इससे मुझे पुरानी बातें याद आ गईं और मन बहुत दुःखी हुआ। मैं यह नहीं कहता कि सवाल मनमें नहीं आने चाहिए। सवाल उठें तो लोगोंको यहाँ आकर विनोबासे उन्हें पूछ लेना चाहिए। लेकिन मुझे दुःख इस बातका होता है कि सवाल पूछनेका रोग व्यापक हो गया है। ऐसे सवाल

१. यह भाषण वर्धासे रवाना होने से पहले आश्रमकी प्रातःकालीन प्रार्थना सभामें दिया गया था।