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पत्र : शास्त्री महाशयको

लोगोंमें यह विश्वास साधारणतः काफी हदतक घर कर गया है, तब मैंने सोचा कि मुझे इसका उल्लेख 'यंग इंडिया' के स्तम्भोंमें करना ही चाहिए ।

मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि रा० बाबूने कविकी अन्य योग्यताओंका भी उल्लेख किया है। मैं यह कहनेकी अनुमति चाहता हूँ कि उनकी अन्य योग्यताओंकी तुलना उनके अनुपम काव्यसे नहीं की जा सकती। सुधारकके रूपमें मेरा उनके साथ मतभेद रहेगा ही। किन्तु कविके रूपमें उनकी समानता कौन कर सकता ? आज दुनियामें सुधारक तो बहुतसे है, किन्तु कविताके क्षेत्रमें वे एक ही हैं; और वे इसमें उनसे कोसों आगे हैं। वे एक महान् अध्यापक भी हैं, किन्तु उन्होंने स्वयं मुझसे कहा कि उनका शिक्षा शास्त्र उनके लिए विनोद-मात्र है। उनमें चाहे और कितनी ही बड़ी-बड़ी योग्यताएँ क्यों न हों, पर उनके काव्यके साथ उन सबका उल्लेख करना उनके काव्यकी अन्यतम उत्कृष्टताकी उपेक्षा करना होगा। कमसे-कम मैं तो ऐसां ही सोचता हूँ ।

अन्तमें जब मैं यह विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने यह लेख अप्रेमपूर्ण, अमैत्रीपूर्ण अथवा आलोचनाकी भावनासे नहीं लिखा था, मैंने उसे आलोचनाको निरस्त्र करने तथा इस बातको सिद्ध करनेके लिए ही लिखा था कि मेरे साथ उनके मतभेद होनेसे उनके प्रति मेरे सम्मान और प्रेममें कोई कमी नहीं आ सकती, इसलिए कृपया आप सब लोग भी मुझे अपने में से एक समझें और मानें कि मैं भी कविको या उनके उद्देश्य- को कभी गलत नहीं समझ सकता । आप मेरा साथ न छोड़ें अथवा मुझे गलत न समझें । कृपया रा० बाबूसे कहें कि वे मुझे एक पंक्ति में इतना-भर लिखकर भेज दें कि वे मेरे स्पष्टीकरणसे सन्तुष्ट हो गये हैं। कृपया आप कविसे यह आश्वासन प्राप्त करें कि कमसे-कम उन्होंने तो मुझे गलत नहीं समझा है ?

आप इस पत्रको जिसे चाहे दिखा सकते हैं ।

सस्नेह,

आपका,

मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।

सौजन्य : नारायण देसाई


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